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________________ [ 3.] जैन लिंग निर्णय // संयोग से दोनों के रुधिर और वीर्य भेला होने से नगर के रस्ते अर्थात् शहरोंको मोरीमें औरभी अनेक तरह के अपवित्र स्थान अर्थात् सर्व जगह मनुष्योंका अशुचि स्थान अपवित्र सर्व जानलेना ये चौदह बोलतो गिनाये हैं औरभी अशुचि स्थान सर्व जानलेना इन सब में छमोबम मनुष्य उत्पन्न होते हैं और उन मनुष्यों की देह अंगुल के असंख्यात 3 भाग प्रमाण होती है असनी अर्थात् मनकर के रहित मिथ्या दृष्टि होते हैं और उनका शरीर पर्याप्ता अंतर मुहर्त के आयुखावाले होते हैं ये छमालम मनुष्य पंचन्द्री होता है ऐमे सर्वज्ञ देव वीतरागने अपने केवल ज्ञान में देखातो इस पाठ के देखने से जो सदा मुखपत्ती मुख पर बांधे रहते हैं उनके थकादिक मुखके मैलसे भीजाती है सो उसमें पंचेद्रिया जीवकी हिंसा लगती है वोही बांधने वाले को लगती है इसलिये मुखका बंधन छोडो क्या जैन धर्म को भंडो कुमती को क्यों मंडो इस प्रमाण को सुन मुखबांधने वाले कहने लगे कि आपने प्रमाण दिया सोतो ठीक है परंतु मुख की भाफ गरम है. जिम्से जीवकी उत्पत्ति नहीं होती तब मिद्धांती साक्षी देने वाले कहते हैं कि भोदेवानप्रिय! मति कल्पना को छोडे। कु गुरुका संग तोडो सगरू की बाणीको हिदे में जोडो क्योंकि देखो श्री वीतराग सर्वज्ञ देवने तीन प्रकार की योनि कही है सोही दिखाते हैं पाठः समुछिममणुस्साणभंतीकसितजोणि ओसणाजोणी सीतो सीणाजोणी गोयमा तीवीहाजोणी सूत्रपन्नवणापदपहिले मध्ये देखो ____ अर्थः-श्री गोतम स्वामी पूछते हुए कि हे पूज्य छमोछम मनुष्य की शीत अर्थात् ठंडी जोनी है अथवा गरम जोनी है अथवा कुछ शीतल कुछ गरम जोनी है तब श्री महाबीर स्वामी कहते हुए कि हे गोतम तीनों जोनी के छमोछम उपजते हैं इस कहने से तीनों जोनी ठहरी तो हे मुखबांधनेवालो तुम्हारी महपत्ती का -
SR No.020393
Book TitleJain Ling Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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