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छारहा वहां सत्य का क्या काम है । सरलता नही नम्रता, नहीं रहे क्षम्यागुण आपका ॥ क्रोध० ॥ ॥ एक क्रोधी जिस्के घर, सब कुटुम्बको क्रोधी करे। दिल चाहै ज्युं बकता रहे, नहीं ध्यान रहे मा बापका || क्रोध० || २ || क्रोधी अपनी जानया, पर जानको गिनता नहीं । अवगुण निकाले औरका, यह काम नहीं असराफ का || क्रोध० || ३ || प्रिती तुटे क्रोध से, गुण नष्ट होवे क्रोधसे । हित बातपर गुसाकरे, फिर काम क्या चुपचाप का || क्रोध ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । क्रोध से बचते रहो, टल जावे दुःख संतापका || क्रोध मत० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्.
गजल नं० ८ ( मान निषेधपर ) तर्ज० || पूर्ववन् ||
मान करना है बुरा, जहां मान वहां अपमान है। लाभ या नुक्सान इस्में, तुझको नहीं कुच्छ मानहै || ढेर || लाखों रुपैया हाथ से, बरबाद कर दिया मानसे । शुभ काम में दमडी नहीं तू, कायका इन्सान है | मान करना है बुरा || १ || सीताको देना हाथसे, रावन को मुश्कील होगया । मर मिटा वो भी मरद, अभीमान एसी तानहै || मान करना ० || २ || संसारमें या धर्म में, तें बीज बोया फूटका । दिलको किया राजी यहां, आखिर नर्क अस्थान है || मान करना० || ३ || दुनियां में केइ होगए, फिर और भि होजायेंगें । घुमते गजराज उनके, स्थान
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