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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) अब बेरान है || मान करना० || ४ || मेरे गुरु नन्दलालजीका, येही नित्य उपदेश | छोडदे ज्यो मान उस्का, तुरत ही सनमान है || मान करना० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम् गजल नं० ९ ( कपट निषेधपर ) तर्ज || पूर्ववत् ॥ कपट करना छोडदे, निस कपट रहना ठीक है । थोडासा जीना जगत में, निसकपट रहना ठीक है || ढेर || सीता सती को कपटसे, लंका में रावण लेगया। आखिर नतीजा क्या मिला, निसकपट रहना ठीक है || १ || लेन में या देन में, छलकपट से डरता नहीं। वो राज में पावे सजा, निसकपट रहना ठीक है, || २ || दम्भी मनुष्य का जक्त में, विस्वास कोइ करतानहीं । कपट हैं घर झूठका, निसकपट रहना ठीक है || ३ || माया से नर नारी हुआ, नारीसे पुनः वह क्लीव बने । यह कपट का फल जान के, निस कपट रहना ठीक है ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । निसकपट से इज्जत बढे, निसकपट रहना ठीक है || ५ || सम्पूर्णम् ० || से गजल नं० १० ( लोभनिषेधपर ) तर्ज || पूर्ववत्० ॥ 1 लोभ नवमा पाप है, तूं लोभ तज संतोष कर । निर्लोभ में आराम है, तू लोभ तज संतोष कर || ढेर || लोभ से हिंसाकरे, और झूठ बोले लोभसे || लोभसे चोरी करेतूं, लोभ तज सं For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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