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गजल नं. ६ (हितोपदेश)
तर्ज-पूर्वोक्त. कर्म यहां जैसा करे, वैसाही वो फल पायगा । इसलोक या परलोकमें, वैसाही फल पायगा ॥ टेर ॥ शास्त्रका फरमान है, हट छोडके कर खोजना । पूर्ण ज्ञानी कथगए, वोही कथन मिल जायगा || कम यहां ॥ १ ॥ कोई सुखी कोई दुःखी, कोई रंक है कोई राजवी। कोई धनी कोई निर्धनी, यह अवश्यही मिल जायगा । कर्म० ॥ २ ॥ कोई चरन्द कोई परन्द, कोई छोटे मोटे जीव है । अपने २ कर्म से, सुखदुःख सभी भर जायगा । कर्म यहां० ॥ ३ ॥ कृष्ण जी के भ्रात, गजसुखमालजी हुवे मुनि । बदला उन्होंने दीयातो, कैसे तू छुटजायगा ॥ कर्म यहां० ॥ ४॥ शालभद्रजीको मिली ऋद्धि सुपातर दानसे । निज हाथसे करदान तू भी, एसाही फल पायगा । कार्य यह ० ।। ५ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । सब कर्मोंका फन्द छुटनेसे, मोक्षका फल पायगा ॥ कर्म यहां०॥ ६ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. ७ (क्रोधनिषेधपर )
तर्ज--पूर्वोक्त. क्रोधमतकर अहजीया, सुणहाल छट्टे पापका । क्रोधकी ज्वाला गरम, रख खोफ इस्की तापका ।। टेर ॥ क्रोध जिस्के
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