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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनयकी रीत बताते । बुलवाते जी जीकारतो, यश जगतमें पाते ॥ मगदूर क्या० ॥१॥ ज्यो हिंसा झूठ चौरी, कुकर्मोंसे डराते । पहिले हिदायत होतीतो, क्यों नाम लजाते ॥ मग्दुर क्या० ॥ २ ॥ शुरूसे सिखाई गालियां, अबवो हाथ उठाते । खिंचे पकडकर बाल, न कुच्छभी सरमाते । मगदूर० ॥ ३ ॥ जैसाकी रहै संगमें, गुण वैसाही आते । इस न्यायको विचारके, सु संगमें लगाते ॥ मगदूर क्या० ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी सत्य बात बताते, सु पुत्र दीपककी तरह, निज कुलको दीपाते ॥ मग्दूर० ।। ५ ।। सम्पूर्णम्. गजल नं. ५ (नेक नसिहत ) तर्ज कल मतकरना मुझे, तेगोतवरसे देखना ।। यह ।। ___ कहने वाला क्या करे, तेरी तुझे मालूम नहीं । कु पथमें अब क्यों चले, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ टेर ॥ आया था किस कामपर, और काम क्या करनेलगा । खास मतलब क्या हुवा, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ १ ॥ पाया जो धनमाल कुछ, शुभ कार्यमें निकला नहीं। कु कार्य में पैसा गया, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ २ ॥ लोहकी गठडी बांधके, तेने उठाई शिशपे । सिंधु से हो पारकैसे, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ ३ ॥ जहर खाकर जीवना, प्रतिबोधसुतेसिंहको। यूं पापका फल है बूरा, तेरी तुझे मालूम नहीं ॥ ४ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । अबडाव आया जीतका, तेरी तुझे मालूम नहीं॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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