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( १९ )
बाप बेटे, राज्य तकजो चढगए । बरबाद पैसे सब हुवे, तुम छोड़दो कुसम्पको || संतोंका० || १ || राज्य रावन का गया, पंचों कि गई पंचायती | सानु कि गई मानता, तुम छोडदो कुसम्पको || संतोंका ० ॥ २ ॥ केई तो खुद मरगए, और केई को मरवा दिये । केई गए परमुल्क में, तुम छोडदो कुसम्पको || संतोंका ||३|| केई की इज्जतगई, केई धर्म में हानि करी | भरम घरका खोदिया, तुम छोडदो कुसम्पको० || ४ || मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । सम्पनें सुख है सदा, तुम छोडदो कुसम्पको || संताका० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्.
गजल नं २७ ( सत्बोध० ) तर्ज :- पेलु में मेरे यार है | यह० ॥
जीया मानले मुनिराज, सच्ची कहत है अरे । ले मुक्तिको सामान, अब ढिल क्यों करे ॥ ढेर ॥ यह मात तात कुटुम्बभ्रात, सेतु नेह करे । न तुमको तारनहार, क्यों इनकीजाल में परे || जीयामानले ० ||१|| बनजाउं मैं धनवान्, एसी कल्पना करे । न भाग बिना पावे, नाहक डोलतो फिरे || जीयामानले ० || २ || है थोडिसी जिन्दगानी, तू न पापसे डरे । विन पाल्यां धर्म नियम, कैसे आतमा तरे ॥ जीयामानले० || ३ || मेरेगरु नन्दलालजी हैं संतों में सिरे। संसार सागर घोर, आपतारे और तिरे । जीयामानले ० ॥ ४ ॥
सम्पूर्णम्.
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