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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) गजल नं. २८ (गुरु गुणमहिमा० ) तर्ज-पूर्ववत. गुरु देवकी मुझ सेव, पुन्ययोगसे मिली । सुना बैन खुला नैन, मेरी भाना टली ॥ टेर० ।। प्रकर्ति है मुलाम, ज्यु गुलाबकी कली । सब भनकी मेरी आस, बहुत दिनसे फली । ॥ गुरु देवकी ॥१॥ निर्यक्ष होके कहते कथा, ज्ञान कि भली । मुझे आवे स्वाद, मुंह में ज्युं मिष्टानकी डली | गुरु देवकी० ॥२॥ है ज्ञान के दरियाव धोवे, पापकी कली । न मान माया लोभ, है वैराग्यकी झली ॥ गुरु देवकी ० ॥ ३ ॥ मेरेगुरु नन्दलालजी, संतोषकी सली । तम शिव्य को गुरु भक्ति से, सुखसम्पती मिली ॥ गुरु देवकी० ॥ ४ ॥ सम्पूर्णम्. स्तवन नं. २९ ॥ तज-ख्यालकी. ... वन्दु मुनि नन्दलाल जी महाराज, सुधारे-भव्यजीवों के काज टेर। निरले भी निरलालची सरे, तारण तिरण जहाज । सत्योपदेशक अति गुणिहो, मेरे सरके ताज ॥ बन्दु मुनि०॥१॥ तत्व ज्ञान के ज्ञाता आपकी, मिट्ठी घणि आवाज | चार संघमें बैठासोहे, जैसे नक्षत्रराज || बन्दु मुनि० ॥ २॥ दे उपदेश भव्य हित कारन, बान्धे धरमकी पाज । जंगम सुरतरू प्रतक्ष आपहो, इस कलयुगमें आज || बन्दु मुनि० ॥ ३ ॥ मिथ्यात्व निकंदन किया आपने, सिंह तणि परेगाज । शिष्य वर्गको ज्ञान ध्यानका, खुबदिया है साज || बन्दु मुनि०॥ ४ ॥ धैर्यवान् गुरु खूबचन्दजी, तारी जैन समाज । सिंगोलीमें "सुख" मुनि कहै, रखियो गुरुजी लाज ॥ बन्दु मुनि० ॥ ५ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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