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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६) समझ ले अछि तरह ॥ कोन०॥ २ ॥ वायु या मनकी गति, ज्यु वेग नदी का बहै । स्थिर नहीं सूरज शशी, तू समझ ले अछि तरह ।। कौन० ॥ ३ ॥ राज पाया मुल्क का, किसी रंक ने ज्युं स्वप्न में | वो थाट कितनी देर का, तू समझ ले आछि तरह ॥ कौन० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलाल जी का, येही नित्य उपदेश है । सफल कर इस वक्त को, तू समझ ले आछ तरह ॥ कौन० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम गजल नं० २२ (हितोपदेश ) तर्ज पूर्ववत मनुष्य का भव पायके, शुभ काम तेने क्या किया । अपने या परके लिये, शुभ काम तैने क्या किया ॥ टेर || नामवर जीमन किया, दुनियां में व्हा व्हा हो रही । फूला फिर मगरूर में, शुभ काम तैने क्या किया ॥ मनुष्यका० ॥१॥ मित्र मिल गोठां करि, वैश्या नचाई बागमें । माल खागए. मस्करा, शुभ काम तैने क्या किया ॥ मनुष्यका० ॥ २ ॥ तनसे और धनसे बडा, नहीं जाती की रक्षा करी । प्रेम नहीं सत्संग से, शुभ काम तैने क्या किया । मनुष्यका० ॥३॥ दिन गमाया सोय के, और रात गमाई निन्द में । युं वक्त तेरी सत्र गई, शुभ "काम तैने क्या किया ॥ मनुष्यका० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्द लालजीका, येही नित्य उपदेश है । विद्वान होतो समझले, शुभ ‘काम तैने क्या किया । मनुष्य का० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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