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( १५)
गजल नं. २० ( सत्यधर्म स्वरूप ) तर्ज-पूर्ववत.
सचमान संतोंका कहा, यह खास असली धर्म है । चाहे पूछले पंडितों से, यह खास असली धर्म है ।।टेर०॥ जीवोकी रक्षा करे, और झूठ नहीं बोले कभी। चौरीका त्यागन करे, यह खास असली धर्म है ॥ सचमान० ॥ १ ॥ ब्रह्मचर्य का पालना, संग परिग्रह का परिहरे । रात्री भोजन नहीं करे, यह खास असली धर्म है ॥ सच मान० ॥२॥ पांचों इन्द्रि को दमे, क्रोधादि चारों जीत ले। सम भाव शत्रु मित्र पे, यह खास असली धर्म है ॥ सच मान० ॥ ३ ॥ दान दे तप जप करे, नरमि रक्ख सबसे सदा । शुभ योग में रमता रहे, यह खास असली धर्म है। सच० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । गुण पात्रकी सेवा करे, यह खास असली धर्म है ।। सच मान०॥ ५ ॥ संपूर्णम्. गजल नं० २१ ( अल्पायु विषय पर )
__ तर्ज पूर्ववत् कौन यहां अमर रहा, तूं समझले अछि तरह । उमर तेरी जारही, तूं समझ ले आछि तरह ।। टेर । डाब आणि जल बिन्दु जैसी, उम्र तेरी अल्प है। दो पञ्चास वर्ष हद है, तूं समझ ले आछि तरह ॥ कौन यहां ॥१॥केई सागरोपम लगे, सुख भोगवे सुर स्वर्ग में । वह भी स्थिती पूरन हुवे, तू
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