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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) उपदेश है। निन्दापगई छोडदे, क्यों पापका भागिबने। ॥ करके० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. १७ (सत्संग विषयपर ) तर्ज पूर्ववत्. सत्संग से ज्ञानी बने, तू चाहे जिनसे पूछले । मोक्षभी हांसिल करे, तू चाहे जिनसे पूछले ॥ टेर० ॥ केई पापी होचुके, वो तिरगए सत्संगसे । शकहो तो मेरी हे रजा, तू चाहै जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० । १ ॥ जैसे पथ्थर नावके संग, नीरमें तिरता रहै। परले कीनारे वो लगे, तू चाहे जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० ॥ २ ॥ ज्यो हलाहल जहर को भी, वैद्यकी संगत मिले। अमृत बनादे औषधी, तू चाहै जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० ॥ ३ ॥ सोनी सुवर्णको तपाकर, जलती अग्निमें धर। फूंककर निर्मलकरे, तू चाहे जिनसे पूछले सत्संगसे० ॥ ४॥ मेरेगुरु नन्दलालजी का, येही नित्य उपदेश है । सुधरे पशुभी संगसे, तू चाहे जिनसे पूछले ॥ सत्संगसे० ॥ ५ ॥ सम्पूर्णम्. गजल नं. १८ (सुशिष्य गुणकीर्तन ) तर्ज पूर्ववत. आज्ञा गुरुकी मानते, ज्यो वो ही सिश सुशिष्य है। आज्ञाको पालन नाकरे, लो वोही शिष्य कुशिष्य है ।। टेर० ।। बन्दना करके सुबेही, पूछले गुरु देवसे | आज्ञा होवे वो करे, ज्यो वोही शिष्य सुशिष्य है । आज्ञा० ॥ १ ॥ आते जाते देख गुरुको, हो खडा कर जोडके । भावसे भाक्त करे, ज्यो For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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