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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) मतकर नशा० ॥ २ ॥ वो निरलज होते चोडे, फिर साथ छोकरा दौडे, घरका बरतन वासन फोडे, हा हा हंसीकराने वाले ॥ मत कर नशा० ॥ ३ ॥ न रहे हिता हित ख्याल, मुख से बाले आल पंपाल, करते लोग हाल बे हाल, हा व्हा मोज उडाने वाले, ॥ मतकर नशा० ॥ ४ ॥ अब है बहुत मजेका टेम, तेरेरहेगा हमेशा क्षेम, करदे दिलले झटपट नेम, अ५नी ईज्जत बढ़ानेवाले, ॥ मतकर नशा० ॥ ५ ॥ मेरे गुरू मुनि नन्दलाल, हे सब जीवे के प्रतिपाल, देते मिथ्या भर्म को टाल, सच्चा ज्ञान सुनाने वाले ।। मतकर नशा ॥ ६ ॥ सम्पूर्णम् गजल नं० १६ ( परनिन्दा निषेध पर.) तर्जः-नम्बर १४ की गजल वाली करके बुराई और की, क्यों? पापका भागी बने, बहकाने वाले बहुत हैं, क्यों ? पापका भागीबने । टेर ॥ सत्य हो चाहे झूठ हो, निर्णय तो करना ठीक है, । अपनी२ तानके क्यों? पापका भागी बने, ॥ करके० ॥ १ ॥ काने सुणि झुठी हुवे, आंखोंसे देखि सत्य है। दखिभी झूठी हो सके, क्यों? पापका भागिबने ॥ करके ।। २ ॥ मुखसे बूराई निसरे, ज्यु हाटहो चर्मकारकी। यह न्याय निन्दकपे सही, क्यों पापका भागिबने० ॥ करके० ॥ ३ ॥ नीर को तज खीर पीवे, हंसका यह धर्म है । तू भि गुणले इस तरह, कों पापका भागिबने. ॥ करके० ॥ ४ ॥ मेरे गुरु नन्दलालजी का, येही नित्य For Private and Personal Use Only
SR No.020389
Book TitleJain Gyan Gajal Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandji Maharaj
PublisherFulchand Dhanraj Picholiya
Publication Year1925
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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