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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३० हरीतक्यादिनिघंटे टीका - कुटी १, कटुका २, तिक्ता ३, कृष्णभेदा ४, कटुंभरा ५, ॥ १५२॥ अशोका ६, मत्स्यशकला ७, चक्राङ्गी ८, शकुलादनी ९, मत्स्यपित्ता १०, कांरुहा ११, रोहिणी १२, ये द्वादश कुटकीके नाम हैं ॥ १५३ ॥ कुटकी कडवी, और पाकमें तिक्त है, रूखी है, और शीतल, तथा हलकी है, तथा भेदनी है, और दीपनी, हृद्य, पित्त, तथा ज्वर इनकों हरनेवाली है ॥ १५४ ॥ और प्रमेह, श्वास, कास, तथा रक्तपित्त, और दाह, कुष्ठ, कृमि, इनकोंभी जीतनेवाली है. अथ किराततिक्तनामगुणाः. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किराततिक्तः कैरातः कटुतिक्तः किरातकः ॥ १५५ ॥ काण्डतिको नार्यतिक्तो भूनिम्बो रामसेनकः । किरातकोsन्यो नैपालः सोऽर्धतिको ज्वरान्तकः ॥१५६॥ किरातः सारको रूक्षः शीतलस्तिक्तको लघुः । सन्निपातज्वरश्वासकफपित्तास्रदाहनुत् ॥ १५७ ॥ कासशोथतृषाकुष्ठज्वरव्रणरुमिप्रणुत् । ' टीका - किराततिक्त १, कैरात २, कटुतिक्त ३, किरातक ४, ॥ १५५ ॥ काण्डति ५, नारीतिक्त ६, भूनिम्ब ७, रामसेनक ८, दूसरा चिरायता नेपालीनामका होता है. वोह कुछ कडवा होता है, ज्वरांतक ॥। १५६ ॥ ये दश चिरायतेके नाम हैं. चिरायता सारक, और रूखा, तथा शीतल, तिक्त, और लघु, होता है ।। १५७ ।। चिरायता कफ, पित्त, दाह, इनकों हरनेवाला है, और कासरोग, सूजन, तृषा, तथा कुष्ठ, ज्वर, व्रण, और कृमि, इनकाभी हरनेवाला होता है. अथ इन्द्रयवनामगुणाः. उक्तं कुटजबीजं तु यवमिन्द्रयवं तथा ॥ १५८ ॥ कलिङ्गं चापि कालिङ्ग तथा भद्रयवा अपि । कचिदिन्द्रस्य नामैव भवेत्तदभिधायकम् ॥ १५९ ॥ फलानीन्द्रयवास्तस्य तथा भद्रयवा अपि । इन्द्रवं त्रिदोषनं संग्राहि कटु शीतलम् ॥ १६० ॥ ज्वरातीसाररक्तार्शोवमिवीसर्पकुष्ठनुत् । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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