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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः । २९ नाम हैं ॥ १४७॥ लौकिकमें इसे खूवकला कहते हैं. खूबकला कफ रक्तपित्त, कृमि, वायगोला, उदररोग, तथा घाव इनको हरनेवाली है. और दस्तावर, कडवी तथा गरम होती है. और प्रमेह, अफरा, तथा विष, पथरी, इनकोंभी हरनेवाली खूब - कला कही है ॥ १४८ ॥ अथ आरग्वधनामगुणाः. आरग्वधो राजवृक्षः शम्याकश्चतुरङ्गुलः । आरेवतो व्याधिघातः कृतमालः सुवर्णकः ॥ १४९॥ कर्णिकारो दीर्घफलः स्वर्णाङ्गः स्वर्णभूषणः । आरग्वधो गुरुः स्वादुः शीतलः स्रंसनो मृदुः ॥ १५० ॥ ज्वरहृद्रोगपित्तास्त्रवातोदावर्तशूलनुत् । तत्फलं स्रंसनं रुच्यं कुष्ठपित्तकफापहम् ॥ १५१ ॥ ज्वरे तु सततं पथ्यं कोष्ठशुद्धिकरं परम् । टीका - आरग्वध १, राजवृक्ष २, संपाक ३, चतुरंगुल ४, आरेवत ५, व्याधिघात ६, कृतमाल ७, सुवर्णक ८, ॥ १४९ ॥ कर्णिकार ९, दीर्घफल १०, सुवर्णांग ११, वर्णभूषण १२, ये अमलतासके नाम कहे. अमलतास भारी, मधुर, शीतल, दस्तावर, और मृदु है ॥ १५० ॥ ज्वर, हृदयरोग, तथा रक्तपित्त, और वातरोग, तथा उदावर्त, और शूलकों हरनेवाला है, और उस्का फल दस्तावर है, रुचिकों पैदा करनेवाला है, और कुष्ठ, पित्त, तथा कफ इनकों हरनेवाला है १५१ और ज्वरमें सदा पथ्य है, और कोठेकों अत्यंत शुद्ध करता है. अथ कटुकीनामगुणाः. कुटी तु कटुका तिक्ता कृष्णभेदा कटुम्भरा ॥ १५२ ॥ अशोका मत्स्यशकला चक्राङ्गी शकुलादनी । मत्स्यपित्ता काण्डरुहा रोहिणी कटुरोहिणी ॥ १५३ ॥ की तु कटुका पाके तिक्ता रूक्षा हिमा लघुः । भेदनी दीपनी हृद्या कफपित्तज्वरापहा ॥ १५४ ॥ प्रमेहश्वासकासास्त्रदाहकुष्ठकृमिप्रणुत् । For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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