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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः। ३१ दीपनं गुदकीलास्रवातास्त्रश्लेष्मशूलजित् ॥ १६१ ॥ टीका-कुटजबीज १, यव २, इन्द्रयव ३, कलिंग ४, कालिंग ५, भद्रयव ६, ये इन्द्रयवके नाम हैं ॥१५८ ॥ और श्रीधन्वंतरिजीने और अमरजीने कहा है की, जितने नाम इन्द्रके हैं उतनेही इन्द्रयवकेभी जानो ॥ १५९ ॥ फिर ये इन्द्रयव त्रिदोषका हरनेवाला है, और संग्राही है, कटु, तथा शीतल है ॥१६०॥ और ज्वर, अतीसार, तथा खूनी, बवासीर, वमन, विसर्प, और कुष्ठ, इनकाभी जी. तनेवाला है. तथा दीपन है, गुदकील, रक्तवात, और कफरोग, शूलरोग, इन सबकाभी नाशक होता है ॥ १६१ ॥ अथ मयनफलनामगुणाः. मर्दनश्छर्दनः पिण्डीनटः पिण्डीतकस्तथा । करहाटो मरुबकः शल्यको विषपुष्पकः ॥ १६२ ॥ मधुनो मधुरस्तिक्तो वीर्योष्णो लेखनो लघुः। वान्तिकद् विद्रधिहरः प्रतिश्यायव्रणान्तकः ॥ १६३ ॥ रूक्षः कुष्ठकफानाहशोथगुल्मव्रणापहः । टीका-मर्दन १, छर्दन २, पिंडीनट ३, पिंडीतक ४, करहाट ५, मरुबक६, शल्यक ७, विषपुष्पक ८, ये अष्ट मयनफलके नाम हैं ॥ १६२ ॥ फिर ये मयनफल मधुर, तिक्त, उण, लेखन, और हलकाभी होता है. और वमनकों लानेवाला, तथा विद्रधिका नाशक है, जुषाम, और घावोंकाभी हरनेवाला है ॥ १६३ ॥ और रूखा है, कुष्ठ, कफरोग, अफरा, गुल्मरोग, शोथरोग, तथा व्रण इनकोंभी हरनेवाला है. अथ रास्नानामगुणाः. रास्ना युक्तरसा रस्या सुवहा रसना रसा ॥ १६४ ॥ एलापर्णी च सुरसा सुगन्धा श्रेयसी तथा। रास्नाऽमपाचिनी तिक्ता गुरूष्णा कफवातजित् ॥ १६५॥ शोथश्वाससमीरास्त्रवातलोदरापहा। कासज्वरविषाशीतिवातकामयहिध्महत् ॥ १६६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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