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मांसवर्गः। प्रसहाः कीर्तिता एते प्रसह्याच्छिद्य भक्षणात् । प्रसहाः खरवीर्योष्णास्तन्मांस भक्षयन्ति ये ॥ २९ ॥
ते शोषभस्मकोन्मादशुक्रक्षीणा भवन्ति हि। टीका-प्रतुदोंकी गणना और गुण हरीत कठफोर वा जंगली तीतर पहाडी तोता ॥ २४ ॥ पारवा खंजन कोइल इत्यादिक यह प्रतुद कहेहैं जो अपनी चोंचसें तोडकर खातेहैं इसवास्ते प्रतुद हरील इसप्रकार लोकमें कहतेहैं ॥२५॥ कपोत धवल पाण्डु शतपत्र बृहच्छुक दार्वाघाट इसप्रकार अमरमें कहाहै कठपारवा इसप्रकार लो. कमें कहतेहैं प्रतुद मधुर पित्त कफकों हरता कसेला शीतल ॥२६॥ हलका मलकों बाधनेवाला और कुछ एक वातकों करनेवाला कहा हैं अथ प्रसहोंकी गणना
और गुण कौव्वा गिद्ध उल्लू ॥ २७ ॥ चील वाज नीलकंठ भास यह गिद्धका भेदहै कुरीर इत्यादि यह पक्षी प्रसह कहेहैं वाज इसप्रकार लोकमें कहते हैं येह गिद्धके किस्म में हैं कराकुर इसप्रकार लोकमें कहतेहैं ॥ २८ ॥ यह जबरदस्ती काटकर खातेहैं इसवास्ते प्रसह हैं प्रसह वीर्यमें उष्ण है उनके मांसकों जो भक्षण करतेहैं ॥ २९ ॥ वे शोष भस्मक उन्मादयुक्त और शुक्रक्षीण होजातेहैं. अथ ग्राम्याणां कूलेचराणां प्लवानां कोशस्थानां च गुणाः.
छागमेषवृषाश्चाश्वा ग्राम्याः प्रोक्ता महर्षिभिः ॥ ३०॥ ग्राम्या वातहराः सर्वे दीपनाः कफपित्तलाः । मधुरा रसपाकाभ्यां वृंहणा बलवर्धनाः ॥ ३१ ॥ लुलायगण्डवाराहचमरीवारणादयः । एते कूलचराः प्रोक्ता यतः कूले चरन्त्यपाम् ॥ ३२ ॥ कूलेचरा मरुत्पित्तहरा वृष्या बलावहाः। मधुराः शीतलाः स्निग्धा मूत्रलाः श्लेष्मवर्धनाः ॥ ३३॥ हंससारसकारण्डबकक्रौञ्चसरारिकाः। नन्दीमुखी सकादम्बा बलाकाद्याः प्लवाः स्मृताः ॥३४॥ प्लवन्ति सलिले यस्मादेते तस्मात्लवाः स्मृताः। स्थूला कठोरा वृत्ता च यस्याश्चञ्चूपरि स्थिता ॥ ३५॥
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