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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २५० हरीतक्यादिनिघंटे गुटिका जम्बूसदृशी प्रोक्ता नन्दीमुखीति सा । लवाः पित्तहराः स्त्रिग्धा मधुरा गुरवो हिमाः ॥ ३६ ॥ शङ्खः शङ्खनखश्वापि शुक्तिशम्बूककर्कटाः । जीवा एवंविधाश्वान्ये कोशस्थाः परिकीर्तिताः ॥ ३७ ॥ कोशस्था मधुराः स्निग्धा वातपित्तहरा हिमाः । बृंहणा बहुवर्चस्का वृष्याश्च बलवर्धनाः ॥ ३८ ॥ टीका - अथ ग्राम्योंकी गणना और गुण बकरी मेंढा बैल घोडा इनकों महर्षियोंने ग्राम्य कहा है ॥ ३० ॥ सब ग्राम्य वातकों हरते दीपन कफपित्तकों करनेवाले हैं और रसपाक में मधुर पुष्ट बलकों बढानेवाले हैं ॥ ३१ ॥ अथ कूलेचरों की गणना और गुण भैंस गैंडा सूकर चवर गाय हाथी आदिक यह कूलेचर हैं क्योंकी जलके किनारे विचरतें हैं || ३२ ॥ भैंस गैंडा चवर पुच्छ गौ कूलेचर वातपित्तकों हरते शुक्रकों करनेवाले बलकारी मधुर शीतल चिकने सूत्रकों करनेवाले और arat बढानेवाले हैं ॥ ३३ ॥ अथ प्लवोंकी गणना और गुण हंस सारस कुरंड बगला टींक आडी नन्दीमुखी यह वोह जानवर हैं जिसके चोंचपर जामनके सम गुठली होती है और बतकसा होता है करवा वगुला आदि ये प्लव कहें हैं ||३४|| यह जलमें रहतेहैं इसवास्ते इनकों प्लव कहा है करडुवा ढींक आडी इति स्थूलकठोर गोल जिसके चोंचपर रहता है जामुनके गुठली के समान वो नन्दीमुखी कहा है ॥ ३५ ॥ करवा इसप्रकार लोकमें कहते हैं लव पित्त हरते चिकने मधुर भारी शीतल वातकफकों करनेवाले और शुक्रकों करनेवाले सरहै || ३६ || अनन्तर कोशथोंकी गणना और गुण कहते हैं शंख छोटा शंख सीप घोंघा केकडा इसप्रकारके जीव और कोशस्थ कहें हैं ॥ ३७ ॥ कोशस्थ मधुर चिकने वातपित्तकों हरते शीतल पुष्ट बहुत मलकों करनेवाले शुक्रकों करनेवाले और बलकों बढानेवाले हैं ॥ ३८ ॥ अथ पादिनां मत्स्यानां जंघालानां च गुणाः. कुम्भीरकूर्मनकाश्च गोधामकरशङ्कवः । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घण्टिकः शिशुमारश्चेत्यादयः पादिनः स्मृताः ॥ ३९ ॥ पादिनोऽपि च ये ते तु कोशस्थानां गुणैः समाः । मत्स्यो मीनो विकारच उपो वैसारिणोऽण्डजः ॥ ४० ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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