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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ हरीतक्यादिनिघंटे लवणेन कर्फ हन्ति पित्तं हन्ति सशर्करा । घृतेन वातजान् रोगान् सर्वरोगान् गुडान्विता ॥ ३२ ॥ टीका-हरीतकीकों लवणके साथ खानेसे कफकों नाश करती है और शर्कराके साथ खानेसे पित्तकों शांति करती है तथा घृतके साथ सेवन करनेसे वातरोगोंको और गुडके साथ सेवन करनेसें समस्तरोगोंकों हरीतकी नाश करती है ॥ ३२ ॥ सिंधूत्थशर्करा शुण्ठी कणा मधुगुडैः क्रमात् । वर्षादिष्वभया प्राश्या रसायनगुणैषिणा ॥ ३३ ॥ टीका-सेंधानोन, शर्करा, सोंठि, पीपल, मधु, और गुड क्रमसें हरीतकीकों इनके साथ वर्षादि ऋतुओंमें रसायनके गुण चाहनेवालोंकों सेवन करनी चाहिये ॥ ३३ ॥ अध्वातिखिन्नो बलवर्जितश्च रूक्षः कशो लंघनकर्षितश्च । पित्ताधिको गर्भवती च नारी विमुक्तरक्तस्त्वभयां न खादेत्३४ टीका:-मार्गसें अतिखिन्न हुआ बलसे रहित, रूखा, कृश, लंघन करनेसें दुर्बल हुआ पित्त अधिकवाला, गर्भवती स्त्री, और फस्त लिया हुआ इत्यादि मनुप्योंकों हरीतकी खानी नहीं चाहिये ॥ ३४ ॥ __ अथ बिभीतकस्य नामानि गुणाश्च. बिभीतकस्त्रीलिङ्गः स्यानाक्षः कर्षफलस्तु सः। कलिट्ठमो भूतावासस्तथा कलियुगालयः॥ ३५ ॥ टीकाः-अब बहेडेके नाम तथा गुण लिखते हैं. बिभीतक, त्रिलिंग, अक्ष, कर्षफल, कलिद्रुम, भूतावास, कलियुगालय, ये सात नाम बहेडेके हैं ॥ ३५॥ बिभीतकं स्वादुपाकं कषायं कफपित्तनुत् । उष्णवीर्य हिमस्पर्श भेदनं कासनाशनम् ॥ ३६ ॥ रूक्षं नेत्रहितं केश्यं कृमिवैस्वर्यनाशनम् । विभीतमजा तृच्छर्दिकफवातहरो लघुः॥ ३७॥ कषायो मदकच्चाथ धात्रीमजापि तद्गुणः । टीका-बहेडा पाकमें मधुर कसेला कफ पित्तका नाशक है उणवीर्यवाला For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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