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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः । स्पर्शमें शीतल भेदन कासका नाशक है || ३६ || रूपानेत्रके हित करेनेवाला है और केशोंके हित करेनवाला है और कृमि तथा स्वरभंगका नाश करता है और बहेडेकी गिरी, तृषा, वमन, कफ, वात इनकों नाश करनेवाली और हलकी होती है ॥ ३७ ॥ तथा कसेली और नाश करनेवाली होती है और आमलेकी गिरी - भी इसीके समान गुणोंकों करती है. अथामलक्या नामानि गुणाश्र. त्रिष्वामलकमाख्यातं धात्री त्रिष्वफलामृता ॥ ३८ ॥ हरीतकी समं धात्रीफलं किन्तु विशेषतः । रक्तपित्तप्रमेहनं परं वृष्यं रसायनम् ॥ ३९ ॥ हन्ति वातं तदम्लत्वात् पित्तं माधुर्यशैत्यतः । कफं रूक्षकषायत्वात् फलं धात्र्यास्त्रिदोषजित् ॥ ४० ॥ यस्य यस्य फलस्येह वीर्यं भवति यादृशम् । तस्य तस्यैव वीर्येण मज्जानमपि निर्दिशेत् ॥ ४१ ॥ टीका - अब आमलेके नाम और गुण कहते हैं. तीनों आमलोंमें धात्रीआमलक प्रसिद्ध है और तीनों में बेफलवाली अमृता प्रसिद्ध है ॥ ३८ ॥ और हरीतकी के समानही धात्रीफलकेभी गुण जानों किंतु विशेष करिके रक्त पित्त और प्रमेहकों नाशक और अत्यन्त वृष्य तथा रसायन होती है ॥ ३९ ॥ वो खट्टेपनसे वायुका नाश करता है, मधुरता और शीतलतासें पित्तको नाश करता है रूपे और कसेलेपन सें कफकों करता है. ऐसे आवला त्रिदोषकों जितनेवाला है ॥ ४० ॥ यहांपर जिसजिसके फलका वीर्य जैसे होता है उसउसके मज्जाकोभी जानलेवे ॥ ४१ ॥ अथ त्रिफलाया लक्षणनामगुणाः पथ्याबिभीतधात्रीणां फलैः स्यात् त्रिफला समैः । फलत्रिकं च त्रिफला सा वरा च प्रकीर्तिता ॥ ४२ ॥ त्रिफला कफपित्तघ्नी मेहकुष्ठहरा सरा । चक्षुष्या दीपनी रुच्या विषमज्वरनाशनी ॥ ४३ ॥ टीका - इसके अनंतर त्रिफलाके नाम और लक्षण तथा गुण लिखते हैं. हर्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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