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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः। तको करनेवाली क्यों नहीं है ॥ २३ ॥ प्रभावसे जो दोषकी नाशकता सिद्ध है उसको कहते हैं शिष्यबोधके अर्थ प्रथमहेतुओंसें नहीं कहा ॥ २४ ॥ अब आश्रयके भेदसें गुणोंकी समता और कर्मान्यता देखी जिसें चिंतवन करनेके योग्य नहीं है जैसें आवले वढहलोंकी ॥२५॥ पथ्याया मजनि स्वादुः स्नाय्वावम्लो व्यवस्थितः। वृते तिक्तस्त्वचि कटुरास्थितस्तुवरो रसः॥ २६ ॥ नवा स्निग्धा घना वृत्ता गुर्वी क्षिप्ता च याम्भसि । निमजेत्सा प्रशस्ता च कथिता सा गुणप्रदा ॥२७॥ नवादिगुणयुक्ता च तथैकत्र विकर्षता। हरीतक्याः फले यत्र द्वयं तच्छ्रेष्ठमुच्यते ॥ २८॥ टीका-हर्डकी मज्जामें मधुर और स्नायुमें अम्ल रहता है, परदेमें तिक्तता और छिलके कडवापन और अस्थिमें कसेला रस होता है ॥ २६ ॥ नवीन स्निग्ध घन गोल भारी और पानीमें डालनेसें डूब जाय वो हरीतकी अच्छी और समस्तगुणोंके देनेवाली होती है ॥२७॥ नवादिगुणकरिके युक्त और तैसेही एकजगह दो तोलेकी श्रेष्ठ है और जो हरीतकीके दो फल एकसाथ जुडेहुए हों वोभी श्रेष्ठ हैं ॥२८॥ चर्विता वर्धयत्यग्निं पेषिता मलशोधिनी। स्विन्ना संग्रहिणी पथ्या भ्रष्टा प्रोक्ता त्रिदोषनुत् ॥ २९ ॥ उन्मीलिनी बुद्धिबलेन्द्रियाणां निर्मूलनी पित्तकफानिलानाम्। वित्रंसिनी मूत्रशन्मलानां हरीतकी स्यात्सह भोजनेन॥३०॥ अन्नपानकतान्दोषान्वातपित्तकफोद्भवान् । हरीतकी हरत्याशु भुक्तस्योपरि योजिता ॥ ३१ ॥ टीका-चर्वण अर्थात् चवाईहुई हर्ड अग्निकों बढाती है, पीसीहुई मलकों शोधन करती है, और तलीहुई संग्रहणीको नाश करती है, तथा भुनीहुई हरीतकी त्रिदोषनाशक है ॥२९॥ बुद्धि, बल, इन्द्रियोंकों प्रकाश करनेवाली और पित्त, कफ, वायु इनकों नाश करनेवाली तथा मूत्र मल दोषोंको निकालनेवाली हरीतकी होती है. भोजनके साथ ॥ ३० ॥ वात, पित, कफसे उत्पन्न हुए दोष और अन्नपानसें हुए दोषोंकों भोजनके उपरांत सेवन की हुई हरीतकी शीघ्रही नाश करती है ॥ ३१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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