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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे ____टीका-मुखपूर्वक योगमें देनेयोग्य होती है और सुलभ सबरोगोंमें प्रशस्त होती है. हरीतकी पांच रसोंसे युक्त और लवणसे रहित तथा बहुत कसेली होती है ॥१८॥ रूक्षोष्णा दीपनी मेध्या स्वादुपाका रसायनी । चक्षुष्या लघुराशिष्या बृहणी चानुलोमनी ॥ १९॥ श्वासकाशप्रमेहार्श कुष्ठशोथोदरकृमीन् । वैस्वर्यग्रहणीरोगविबन्धविषमज्वरान् ॥ २०॥ टीका-रूखी, गरम, अग्निको दीपनकरनेवाली, पवित्र, मधुरपाकवाली, रसायनी होती है, नेत्रोंकों हित करनेवाली और हलकी तथा आयुको हितकारक बृंहणी तथा वायु और मलकों नीचे करनेवाली होती है ॥ १९ ॥ स्वास, कास, प्रमेह, ववासीर, कोढ, सूजन, उदररोग, कृमि, स्वरभंग, ग्रहणी, विबंध अर्थात् कवजियत और विषमज्वर ॥ २०॥ गुल्माध्मानतृषाच्छर्दिहिकाकंडूहदामयान् । कामलां शूलमानाहं प्लीहानं च यत्तथा ॥ २१ ॥ अश्मरी मूत्रकृच्छंच मूत्राघातं च नाशयेत् । स्वादुतिक्तकषायत्वात्पित्तहत्कफहत्तु सा ॥ २२ ॥ टीका–चायुगोला, आध्मान, तृषा, वमन, हुचकी, खाज, हृदयरोग, कामला, शूल, अफरा, तापतिल्ली, ॥२१॥ पथरी, मूत्रकृच्छ्र, और मूत्राघात इतने रोगोंकों हरीतकी नाश करती है. मीठापनसें और तीखापनसें तथा कसेलेपनसे ये पित्तका नाश करती है और कफकाभी नाश करती है ॥ २२॥ । कटुतिक्तकषायत्वादम्लत्वादातहच्छिवा । पित्तकृत्कटुकाम्लत्वाहातकन्न कथं शिवा ॥ २३ ॥ प्रभावाद्दोषहन्तृत्वं सिद्धं यत्तत्प्रकाश्यते । हेतुभिः शिष्यबोधार्थं न पूर्वं कथ्यतेऽधुना ॥ २४ ॥ कर्मान्यत्वं गुणैः साम्यं दृष्टमाश्रयभेदतः। यतस्ततो नेति चिन्त्यं धात्रीलकुचयोर्यथा ॥ २५॥ टीका-कटुपनेसें और तिक्तपनेसें तथा कसेलेपनेसें और खट्टेपनेसें हरीतकी वातका नाश करती है. कडवे और खट्टेपनसें हरीतकी पित्तकों करनेवाली है. तब वा For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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