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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिवर्गः। चूर्णार्थे चेतकी शस्ता यथायुक्तं प्रयोजयेत् । चेतकी दिविधा प्रोक्ता श्वेता कृष्णा च वर्णतः ॥ १२॥ टीका-और चूर्ण बनानेमें चेतकी श्रेष्ठ होती है. उसकी योगके अनुसार योजना करनी. और चेतकी रंगमें दोपकारकी होती है, एक सफेद दूसरी काली॥१२॥ षडङ्गुलायता शुक्ला कृष्णा वेकामुला स्मृता। काचिदास्वादमात्रेण काचिद्गन्धेन भेदयेत् ॥ १३॥ टीका-सफेद छअंगुल लंबी और काली एकअंगुल लंबी होती है; कोई खानेमात्रसें दस्त लाती है और कोई सूंघनेमात्रसेंही दस्त लाती है ॥ १३ ॥ काचित्स्पर्शेन दृष्ट्यान्या चतुर्धा भेदयेच्छिवा । चेतकीपादपछायामुपसर्पन्ति ये नराः ॥ १४ ॥ भिद्यन्ते तत्क्षणादेव पशुपक्षिमृगादयः । चेतकी तु धृता हस्ते यावत्तिष्ठति देहिनः ॥ १५॥ तावद्भिद्येत वेगैस्तु प्रभावान्नात्र संशयः। न धार्ये सुकुमाराणां कशानां भेषजद्विषाम् ॥ १६ ॥ टीका-और कोई स्पर्श करनेसें और कोई देखनेसेंही दस्त लाती है. ऐसी चार प्रकारकी हर्ड होती है. जो मनुष्य चेतकीके वृक्षकी छायामें जाते हैं ॥ १४ ॥ उनकों उसी क्षण दस्त लगजाता है, और मनुष्यके शिवाय पशुपक्षीमृगादिकोंकोभी दस्त लगजाता है, और मनुष्य चेतकीकों जबतक धारण करते हैं ॥ १५॥ तबतक उसके प्रभावसे दस्त लगता है इसमें कुछ संदेह नहीं है. सुकुमारअवस्थावाले और कुश और औषधिके शत्रु इनकों धारण करने योग्य नहीं ॥ १६ ॥ चेतकी परमा शस्ता हिता सुखविरेचनी। सप्तानामपि जातीनां प्रधानं विजया स्मृता ॥ १७ ॥ टीका-चेतकी सुषवी रेचनमें बहुत अच्छी होती है और इन सातो जातकी होंमें विजयानामकी हर्ड सबमें प्रधान कही है ॥ १७ ॥ सुखप्रयोगा सुलभा सर्वरोगेषु शस्यते। हरीतकी पंचरसा लवणा तुवरा परम् ॥ १८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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