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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरीतक्यादिनिघंटे अथ पद्मिनीनामगुणाः. मूलनालदलोत्फुल्ला फलैः समुदिता पुनः । पद्मिनी प्रोच्यते प्राज्ञैर्बिसिन्यादि च सा स्मृता ॥ ६ ॥ (क) आदिशब्दान्नलिनी कमलिनीत्यादि ॥ पद्मिनी शीतला गुर्वी मधुरा लवणा च सा । पित्तासृक्कफनुक्षा वातविष्टम्भकारिणी ॥ ७ ॥ टीका - मूल, नाल, पत्र, पुष्प, फल, इनकरके युक्तकों पद्मिनी ऐसा प्राज्ञ कहते हैं. और मूल विसिनीआदि कही गई है || ६ || (क) आदिशब्दसें नलिनी कमलिनी इत्यादिक जानना. पद्मिनी शीतल, भारी, मधुर, लवण, रसकरके युक्त होती है और यह रक्तपित्त, कफ, इनकों हरनेवाली तथा वातका विजृम्भ करनेवाली है ॥ ७ ॥ अथ नवपत्रादि नामगुणाः. संवर्तिका नवदलं बीजकोशस्तु कर्णिका । किञ्जल्कः केसरः प्रोको मकरन्दो रसः स्मृतः ॥ ८ ॥ पद्मनालं मृणालं स्यात्तथा विसमिति स्मृतम् । संवर्तिका हिमा तिक्ता कषाया दाहतृट्प्रणुत् ॥ ९ ॥ मूत्रकृच्छ्रगुदव्याधिरक्तपित्तविनाशिनी । पद्मस्य कर्णिका तिक्ता कषाया मधुरा हिमा ॥ १० ॥ मुखवैशद्यरुल्लघ्वी तृष्णास्त्र कफपित्तनुत् । किञ्जल्कः शीतलो वृष्यः कषायो ग्राहकोऽपि सः ॥११॥ कफपित्ततृषादाहरक्ताशविषशोथजित् । मृणालं शीतलं वृष्यं पित्तदाहास्त्रजिद्गुरु ॥ १२ ॥ दुर्जरं स्वादुपाकं च स्तन्यानिलकफप्रदम् । संग्राहि मधुरं रूक्षं शालूकमपि तद्गुणम् ॥ १३ ॥ टीका - कमलके नये पत्तोंकों संवर्तिका कहते हैं, और बीजके कोशकों क For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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