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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्पादिवर्गः। १३१ णिका कहते हैं. और परागकों किंजल्क, केसर कहते हैं, तथा रसको मकरंद ऐसा कहते हैं ॥८॥ और उस्के नालको मृणाल, पद्मनाल, बिस ऐसा कहाहै. नवीन पत्ता शीतल कसेला दाह, तृषाकों हरता हैं ॥९॥ और मूत्रकृच्छ्र, गुदारोग, रक्तपित्त, इनकों हरता है और उस्के बीज तिक्त, कसेला, शीतल है ॥ १०॥ और मुखकों स्वच्छ करनेवाले हलके तथा तृषा, रक्त, कफ, पित्त, इनको हरता है. तिर्रियां शीतल, शुक्रकों उत्पन्न करनेवाली, कसेली, काविज होती है ॥११॥ कफ, पित्त, तृषा, दाह, रक्तकी बवासीर, विष, सूजन, इनकों हरनेवालाहै. कमलका नाल, शीतल, शु. क्रको उत्पन्न करनेवाला, और पित्त, दाह, रक्त, इनको हरनेवाला भारी है ॥१२॥ दुर्जर, पाकमें मधुर, दुग्ध, वात, कफ, इनकों उत्पन्न करनेवाली है तथा काविज, मधुर, रूखी होती है और शालूक अर्थात् उस्की जडभी उसीके समान गुणमें होती है ॥ १३ ॥ स्थलकमल, कुमुदनी, कुमुदभेदाः. पद्मचारिण्यतिचरा व्यथा पद्मा च शारदा । पद्मानुष्णा कटुस्तिक्ता कषाया कफवातजित् ॥ १४ ॥ मूत्रकृच्छाश्मशूलनी श्वासकासविषापहा । श्वेतं कुवलयं प्रोक्तं कुमुदं कैरवं तथा ॥ १५ ॥ कुमुदं पिच्छिलं स्निग्धं मधुरं हृद्यशीतलम् । कुमुदती कैरविका तथा कुमुदिनीति च ॥ १६ ॥ . सा तु मूलादिसर्वाङ्गे रक्ता समुदिता बुधैः। कुमुदती च सा प्रोक्ता कुमुदिन्यपि च स्मृता ॥ १७ ॥ टीका-पद्मचारिणी, अतिचरा, अव्यथा, पद्मा, शारदा, यह स्थलकमलके नाम हैं. स्थलकमल शीतल, कडवा, तिक्त, कसेला, कफ, वातकों हरनेवाला है ॥ १४ ॥ और मूत्रकृच्छ, पथरी, शूल, इनको हरता तथा श्वास, कास, विष इनकोंभी हरता है. श्वेतकमलकों कुमुद तथा कैरव कहते है ॥ १५ ॥ श्वेतकमल चिकना, चेपदार, मधुर, हृद्य, शीतल, होता है. कुमुद्वती, कैरविका, कुमुदिनी, यह कुमुदिनीके नाम हैं ॥ १६ ॥ वह मूलआदिसब अंगोंसें खिली हुई होती ऐसा पंडितोंने काहा है. जो पद्मनीके गुण कहे गये हैं वोही कुमुदिनीकेभी कहेहैं १७ For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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