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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गडूच्यादिवर्गः । १०९ aai हरता है जयपाल, दन्तिबीज, तिन्तिडीफल यह जमालगोटेके नाम हैं ॥ २०१ ॥ जमालगोटा भारी, चिकना, रेचन, पित्तकफकों हरता है. इन्द्रवारुणी बडी इन्द्रकला. ऐन्द्रीन्द्रवारुणी चित्रा गवाक्षी च गवादिनी ॥ २०२ ॥ वारुणी च पराप्युक्ता सा विशाला महाफला । श्वेतपुष्पा मृगाक्षी च मृगैर्वारुमृगादनी ॥ २०३ ॥ गवादनीद्वयं तिक्तं पाके कटु सरं लघु । वीर्योष्णं कामलापित्तकफलीहोदरापहम् ॥ २०४ ॥ श्वासकासापहं कुष्ठगुल्मग्रन्थिव्रणप्रणुत् । प्रमेहमूढगर्भामगण्डामयविषापहम् ॥ २०५ ॥ टीका - एन्द्री इन्द्रवारुणी चित्रा गवाक्षी गवादिनी ॥ २०२ ॥ वारुणी ये इन्द्रायनके नाम हैं. दूसरी इन्द्रायनके नाम विशाला, महाफला, श्वेतपुष्पा, मृगाक्षी, मृगैर्वारु, मृगादनी, यह बडी इन्द्रायनके नाम हैं ॥ २०३ || दोनों इन्द्रायन तिक्त, पाकमें कडवी, दस्तावर, हलकी, वीर्यमें उष्ण हैं. तथा कामला, पित्त, कफ, प्लीह, उदररोग, इनकों हरती है ॥ २०४ ॥ और श्वास, कासके नाशक, तथा कुष्ठ, वायगोला, गांठ, व्रण, इनकोंभी हरती है, और प्रमेह, मूढगर्भस्राव, गंडरोग, गंण्डमाला, विष, इनकों हरती है ॥ २०५ ॥ अथ नीलीनामगुणाः. नीली तु नीलिनी तूली कालदोला च नीलिका । रञ्जनी श्रीफली तुत्था ग्रामीणा मधुपर्णिका ॥ २०६॥ कीतका कालकेशी च नीलपुष्पा च सा स्मृता । नीलिनी रेचनी तिक्ता केश्या मोहभ्रमापहा ॥ २०७ ॥ उष्णा हन्त्युदरलीहवातरक्तकफानिलान् । आमवातमुदावर्तं मन्दं च विषमुद्धतम् ॥ २०८ ॥ टीका नीली, नीलिनी, तूली, कालदोला, नीलिका, रंजनी, श्रीफली, तुत्था, ग्रामीणा, मधुपर्णिका ॥ २०६ ॥ क्रीतका, कालकेशी, नीलपुष्पा, ये नी For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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