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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० हरीतक्यादिनिघंटे लाके नाम हैं. नीला रेचन, तिक्त, केशके हित, मोह, भ्रमको हरता है ॥२०७॥ उष्ण, तथा उदररोग, प्लीह, वातरक्त, कफवात, आमवात, उदावर्त, मन्दाग्नि, इनकों हरती है, विष निकालनेवाली है ॥ २०८ ॥ अथ शरपुंख(सरफोका)नामगुणाः. शरपुङ्खः प्लीहशत्रुर्नीली वृक्षारुतिश्च सः। शरपुलो यकल्लीहगुल्मव्रणविषापहः ॥ २०९ ॥ तिक्तः कषायः कासास्त्रश्वासज्वरहरो लघुः। टीका-शरपुंख, प्लीहशत्रु, ये सरफोंकाके नाम हैं. यह नीलक्षके आकार होती है. सरफोंका तिल्ली, प्लीह, वायगोला, व्रण, विष, इनकों रहता है, और तिक्त, कसेला ॥ २०९ ॥ श्वास, ज्वर, इनकों हरता है, और हलका है. अथ दुरालभा(जवासा)नामगुणाः. यासो यवासो दुःस्पों धन्वयासः कुनाशकः ॥ २१०॥ दुरालभा दुरालम्भा समुद्रान्ता च रोदनी । गान्धारी कच्छुरानन्ता कषाया हरविग्रहा ॥ २११॥ यासः स्वादुः सरस्तिक्तस्तुवरः शीतलो लघुः । कफमेदोमदभ्रान्तिपित्तासृकुष्ठकासजित् ॥ २१२॥ तृष्णाविसर्पवातास्वमिज्वरहरः स्मृतः। यवासस्य गुणैस्तुल्या बुधैरुक्ता दुरालभा ॥ २१३ ॥ टीकाः —यास, यवास, दुःस्पर्श, धन्वयास, कुनाशक ॥२१०॥ दुरालभा, दु. रालंभा, समुद्रान्ता, रोदनी, गान्धारी, कच्छुरा, अनन्ता, कषाया, हरविग्रहा, ये जवासेके नाम हैं ॥ २११ ॥ जवासा मधुर, दस्तावर, तिक्त, कसेला, शीतल, हलका है और कफ, मेद, मद, भ्रान्ति, क्तरपित्त, कुष्ठ, कास, इनको हरनेवाला है ॥२१२॥ और तृषा, विसर्प, वात, रक्त, वमन इनको हरता है. पंडिताने जवासेके गुणके समान दुरालभाके गुण कहे हैं ॥ २१३ ॥ अथ मुण्डीनामगुणाः. मुण्डी भिक्षुरपि प्रोक्ता श्रावणी च तपोधना। For Private and Personal Use Only
SR No.020370
Book TitleHarit Kyadi Nighant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangilal Pandit, Jagannath Shastri
PublisherHariprasad Bhagirath Gaudvanshiya
Publication Year1892
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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