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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुमूर्ति अभिषक RECECRECRememoraveezerner परिशिष्टम् । अथ वज्रपरसोत्रम् । ॐ परमेष्ठिनमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वन-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सिद्धाण, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षातिशायिनी। ॐ नमो उवज्झायाण, आयुधं हस्तयोढम् ॥ ३॥ ॐ नमो लोए सव्वसाहणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज्रमयो तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वो वज्रमयो बहिः । मङ्गलाणं, च सव्वेसि खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढम हवइ मंगळम् । वमोपरि वज्रमयं पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भुता, कथिता पूर्वसरिभिः ॥ ७ ॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा। तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥ ८॥ इति ॥ उपरोक्त “ आत्मरक्षा" स्तोत्र से तीन वार आत्मरक्षा करने के बाद फिर दश दिक्पालों का आवाहन करे हाथ में कुसुमाञ्जली लेवे, मन्त्र बोलने पर छिडक दें। Zeeeeeeeeeeeeee ॥ १८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020366
Book TitleGurumurti Pratishtha Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalsagar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1961
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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