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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गुरुमूर्ति ॥ १९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशदिग्पाल आह्वान मन्त्र दिक्पाला का अत्र प्रतिदिशं स्वस्वं बलं वाहनम्, शस्त्रहस्तगतं विधाय भगवत् स्नात्रे जगदुर्लभे । आनंदोल्वणमानसा बहुगुणां पूजोपचारोचयं, सन्ध्यायाप्रगुणं भवन्ति पुरुतो देवस्यळब्धासन ॥ १ ॥ ( इस मन्त्र के पढने पर कुसुमाञ्जली पटे पर छिड़क दे और दश दिकपालों के पटे की अष्टद्रव्य से पूजन करे । ) इन्द्रदिग्पाल पूजन मन्त्र (१) ॐ इन्द्राय पूर्व दिग्धीशाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकाय अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे अमुक नगरे अमुक जिनचैत्ये अमुक पूजामहोत्सवे अमुकाराधिते अत्रागच्छ अत्रागच्छ सावधानीभूय बलिं गृहाण बलिं गृहाण जलं गृहाण चंदनं गृहाण पुष्पं गृहाण धूपं गृहाण दीपं गृहाण अक्षतं गृहाण नैवेद्यं गृहाण फलं गृहाण सर्वोपचा रान्मुद्रां गृहाण " ॐ ह्रीं श्रीं इन्द्राय नमः" । शान्ति तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं दृद्धिं उदयं अभ्युदयं कुरु कुरु स्वाहा | ( यह मन्त्र पढकर इन्द्र दिग्पाल पर पान चढावें । ) (२) ॐ अग्नये ० (३) ॐ यमाय० (४) ॐ नैऋताय० (५) ॐ वरुणाय० ( ६ ) ॐ वायव्याय० (७) ॐ कुबेराय० (८) ॐ ईशानाय० (९ ) ॐ ब्रह्मणे० (१०) ॐ नागाय० ॥ इस प्रकार दश दिग्पालों का मन्त्र पढ कर के जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल वगेरे चढावें ॥ ईति ॥ For Private and Personal Use Only अभिषेक 11 28 11
SR No.020366
Book TitleGurumurti Pratishtha Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalsagar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1961
Total Pages36
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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