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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामुतणीटीका अ २. धन्यस्य विजयेनसह हडिबन्धनादिकम् ' आढति' आद्रियन्ते हृदयेन 'परिजानंति' परिजानन्ति = सुस्वागतं श्रेष्ठिनः ' इति तस्यागमनमनुमोदयन्ति 'सक्कारेंति' सत्कारयन्ति मधुरवचनैः, सम्मर्णेति' समानयन्ति विविधवस्तुसमर्पणेन, 'अब्भुट्ठेति' अभ्युत्तिष्ठन्ति विनयार्थमभिमुखमुत्तिष्ठन्ति शरीरकुशलं च पृच्छन्ति । ततः खलु तद्नन्तरं स धन्यः सार्थवाहो यत्रैव स्वक गृहं तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य यापि च तस्य तत्र बाह्य परिषद् = गृहबहिर्वर्निजनसमुदायः, 'तंजहा' तद्यथा- स यथा 'दास' दासा इतिवा, दासा : = गृहदासी पुत्राः 'पेस्साइ वा ' ६४९ चला - (तरणं तं धणं सत्यवाहं एज्जनाणं पासिता रायगिहे नवरे वहवे नियंग से सत्थवाहपभिगओ आढति परिजाणंनि सक्कारेंति सम्मार्णेति अभुट्ठेति सरीरकुसल पुच्छंति) घर को आते हुए उस धन्य सार्थवाह को जब राजगृह नगर में निज श्रेष्ठी, सार्थवाह आदि लोगोंने देखा तो उन लोगों ने उसका हृदय से खूब आदर किया - "आपका स्वागत हो" इस प्रकार कहकर उसके आगमन की खूब अनुमोदनाकी मधुर वचनों द्वारा उसका खूब सत्कार किया । अने वस्तुओं को भेंट में देकर खूब सन्मान किया । अपनी विनय प्रकट करने के लिये उसके सन्मुख आने पर उठ बैठे शरीर में कुशल समाचार पूछे । (तरणं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उनागच्छ ) इसके बाद धन्य सार्थवाह जहां अपना घर था गया (उवागच्छित्ता) जानि य से तत्थ बाहिरिया परिसा भव) वहां जाकर उसका जो घरक बाहर के लोगों का समुदाय था - ( तं जहा ) जैसा - (दासाइ वा पेस्साइ For Private and Personal Use Only एज्ज माण' पासिता रायगिहे नयरे बहने नियमसेद्वि सत्यवापमय आढति परिजाणति सकारेंति सम्मार्णेति अब्भुति सरीरकुसल पुच्छति) રાજગૃહ નગરના નિજક શ્રેષ્ઠીએ, સાવાહો વગેરેએ જ્યારે ધન્ય સાવાને ઘર તરફ જતાં જોયા ત્યારે તેએ બધાએ મળીને તેમનું હ્રદય પૂર્ણાંક ખૂબ જ સરસ રીતે સન્માન કર્યું. “ તમારૂ સ્વગત છે.” આ રીતે તેના આગમનને અનુમેદન આપ્યું મધુર વચનાથી લેાકાએ ધન્ય સાવાહના સત્કાર કર્યાં. તેને લોકોએ અનેક વસ્તુઓ ભેટમાં આપી. વિનય મતાવવા માટે જયારે ધન્ય સાવાહુ લેાકેાની સામે પહોંચ્યા त्यारे तेथे। जिला थ गया भने तेभाशे शरीरनी दुशणता पूछी. (त एवं से धणे सत्थवाहे जेणेव सए गेहे तेणेव उवागच्छइ) त्यार माह भ्यां तेनुं घर हतुं त्यां गया. ( उवागच्छित्ता जाविय से तत्थ बाहिरिया परिसा भवइ ) त्यां धरनी महार तेना धरना भाणुसोनो समुदाय हो थयो हुतो. (तं जहा )
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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