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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीकाअ.स. ४ मेघमुने हस्तिभयवर्णनम् मेघ 'खलु' निश्चयेन एवं' वक्ष्यमाणरीत्या त्वम् 'इओ तच्चे अईए भवग्गडणे' इतस्तृतीये अतीते भवग्रहणे इतः अस्माद्वर्तमानभवात् तृतीयेऽतीते-गते भवग्रहणे-गजजन्मनि 'वेय गिरिपायम्ले' वैतादयगिरिपादमूले चैताढय गिरेरधेोभागस्य समीपे 'वनयरेहिं' वनचरैः भिल्लपमुखैः, "णिव्यत्तिय णामधेज' निर्वर्तितनामधेयः-निवर्तितं कृतं 'सुमेरुप्रभ' इति नामधेयं यस्य स तथा, स सुमेरुप्रभनामको हस्ती, कीदृश इत्याह-'से ते' इत्यादि । श्वेतवर्णकः, 'संखतलउज्जलविमलनिम्मलदहिधण-गोखीरफेणरयणियरप्पगासे' शंखतलोज्वलविमलनिर्मलदधिधनगोक्षीरफेनरजनिकरप्रकाशः, तथा पुनः कीदृशः 'मनुस्से हे' सप्तोत्सेधः सप्तहस्तप्रमाणोच्छितशरीरः एवं खलु मेहा तुमं इओ तच्चे अईए भवग्गहणे वेयगिरिपायमूले वणयरेहिं णिव्यत्तिय--णामधेज्जे) हे मेघ ! यही बात है न ? तब मेघ. कुमारने कहा--हां भगवान् ! यही बात है। अथ भगवान् मेघकुमार को संयम में स्थिर करने के लिये उसके पूर्व के तीसरे भव का वर्णन करते हुए कहते हैं हे मेघकुमार ! तुम आज से अतीत तीसरे भवमें हाथी की पर्याय में था। और वैताढयगिरि के नोचे भाग के समीप में रहता था। वहाँ वनचरों में तुम्हारा नाम सुमेरुप्रभ था। (सेते संख. तल - विमल - निम्मल - दहिधण - गोखीर फेणरयणीयरप्पयासे - सत्तस्सेहे णवारए दसंपरिणाहे सतंगपइटिए सोमे सुसंठिए संमिए) तुम्हारा वर्ण सफेद था शंखतल के समान, उञ्जक्ल, विमल, निर्मल दधी के समान शरत्कालीन मेघ के समान गाय के दूध के फेन के समान. तथा चन्द्रमा की किरणों के समान तुम्हारा प्रकाश था सात हाथ की ऊचाइ का सम?, एवं खलु मेहा तुमं इओ तच्चे अईए भवग्गहणे वेधगिरिपायमले वणयरेहि णिवति य णामधेज्जे) भेध ! ४ पात छ ने? त्यारे મેઘકુમારે કહ્યું “હા ભગવદ્ ! એ જ વાત છે” ત્યાર બાદ શ્રમણ ભગવાન મહાવીર મેઘકુમારને સંયમમાં સ્થિર કરવા માટે તેના પહેલાંના ત્રીજા ભવનું વર્ણન કરતાં કહેવા લાગ્યા કે હે મેઘકુમાર ! તમે આજના પૂર્વે ત્રીજા ભવમાં હાથીના પર્યાયમાં હતા, અને તમે વૈતાઢયગિરિનાં નીચલા ભાગની પાસે રહેતા હતા ત્યાં वनयशेमा ता३ नाम सुभे३५म तु. (सेते संखतलविमलनिम्मलदहि. धणगोखीरफेणणियरप्पगासे सत्तुस्सेहे, णवायए दस परिणाहे सत्तंगय पइदिए सोमे मुठिए संमिए) तमा। सई हतो, मतदानी म ..4લ વિમલ, નિર્મલ, દહીંની જેમ, શરતકલના મેઘની જેમ ગાયના દૂધના ફીણની જેમ તેમજ ચન્દ્રના કિરણની જેમ તમારો પ્રકાશ હતે. સાત હાથની ઊંચાઈના For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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