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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४२ ज्ञाताधर्मकथा सिने भगवदाज्ञया 'तहगच्छइ' तथा गच्छति संयममार्गे प्रचलति तथा तिष्ठति यावद् उत्थाय = ममादं विहाय, प्राणेषु भूतेषु जीवेषु सत्वेषु 'संजमइ' संयतते सम्यक् यतनां करोति ||० ३८ || - मूलम-ज दिवसं च णं मेहे कुमारे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए तरस णं दिवसस पच्छवरण्हकाल समयंसि समणाणं निम्गंथाणं अहाराइणियाए सेजासंथारएस विभ जमाणेसु मेहकुमारस्स दारभूले सेजासंधारए जाए यावि होत्था । तणं समणा णिग्गंथा पुव्वरत्तावरत्तकालसमयं स वायणाए पुच्छ णा परियहणा धम्माणुजोग चिंताए य उच्चारस्सय पासवणस्स य अगच्छमाणाय निग्गच्छमाणाय अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थे हिं संघद्वंति, एवं पाए हैं, सीसे, पोहे, कायंसि, अप्पेइया ओलंडति अप्पेगइया पोलंडति अप्पेगइया पायरयरेणुगुंडियं करेंति, एवं महालियं चणं स्यणि मेहे कुमारे णो संचाएइ खणमवि अच्छि निमीलित्तए । तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जात्र समुपजित्था - एवं खलु अहं सेणियस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर स्वीकार कर लिया (तमाणाए तह गच्छ तह चिट्ठह, जाब उट्ठाए, उद्वाय पाणेहिं भूएहि, जीवेहि, सत्तेहिं संजमह) अब वे भगवान की आज्ञा से संयममार्ग में उसी तरह से चलने लगे-उसी तरह से उठने बैठने लगे यावत् प्रमाद को छोडकर प्राणियों के ऊपर भूतों के ऊपर जीवों के ऊपर और सवों के अच्छी तरह यतनाचार पूर्वक अपनी प्रवृत्ति करने लगे | || मूत्र ३८ || ( तमाणाए तह गच्छइ तह चिठ्ठई जाव उट्ठाए, उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहि सत्तेर्हि संजमइ ) त्यार माह ते भगवाननी खाज्ञा भुषण ते प्रमा સંયમ માર્ગીમાં ચાલવા લાગ્યા, તેજ રીતે ઉઠવા બેસવા લાગ્યા, પ્રમાદ (આળસ) ને ત્યજીને પ્રાણીઓના ઉપર ભૂતાના ઉપર, છાના ઉપર અને સત્વાના ઉપર, शारी शेते श्तनश्री ( आायवीने ) तेभनी रक्षा अत्ता विशाखा साया ॥ सूत्र “३८” ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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