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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ ज्ञाताधर्मकथासत्रे तदनु मेघकुमारं प्रति भगवानाह 'अहासुहं देवाणुप्पिया' इत्यादि । हे देवानुपिय ! यथासुख-यथासुख भवेत् तथा कुरु, प्रतिबन्धं विलम्ब मा कुरु । श्रेयसि कार्ये प्रमादो न कर्तव्य इति भावः । ततः खलु स मेघकुमारः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति: वन्दित्वा नमस्यित्वा यत्रैव चातुर्घण्टोऽश्वरथ स्तत्रवोषाबच्छति, उपागत्य चातुर्घटमश्वरथं दूरोहति आरोहति, दरुह्य= आरुह्य महता भटचटकरपहकरेण (परिलिप्तः) राजगृहस्य मध्यमध्येन यत्रैव म्बकं भवनं तत्रैवोपागच्छति। उपागत्य चातुघण्टादश्वरथात् प्रत्यवरोहति, आपुच्छामि) मातापिताको इस विषय में पहिले पूछलू । (तो पच्छा) इसके बाद (मुंडे) मुडित (भवित्ता) होकर (णं पव्वइस्सामि) प्रवजित हो जाऊँगा (अहासुयं देवाणुप्पिया?) मेघकुमार की ऐसी बात सुनकर भगवान ने उससे कहा--देवानुप्रिय ? जिससे तुम्हे सुख हो वैसा करो। (मा पडिबंधं करेह) बिलम्ब मत करो। अच्छे कार्य में प्रमाद नहीं किया जाता है (तएण से मेहेकुमारे समणं भगवं महावीरं चंदइ नमसइ) इसके बाद मेघकुमार ने प्रभु को वंदना की और नमस्कार किया। (वंदित्ता नमसित्ता जेणामेव चाउघंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ) वंदना नमस्कार करके फिर वे जहां अपना चातुर्घट अश्वरथ रखा था उस ओर गये (उवागच्छित्ता चाउ. घंटे दुरूहइ दुरुहित्ता महया भडचडगरपहकरेण रायगिहरस नगररस मज्झंमज्झेणं जेणामेव सए भरणे तेणामेव उवागच्छइ) वहां जा कर वे उस पर आरूढ हुए-और आरूढ होकर महाभटों के विस्तीर्णरूप परिवार समूह से युक्त हो कर राज गृह नगर के ठीक मध्यमार्ग से होकर अपने भवन पिताने पडai पछी स. (तो पच्छा) त्या२ ॥४ (मुंडे) मुंडित (वित्ता) थने ( णं पन्चइस्सामि) निश्चितपणे प्रति य ४४२. (अहासुहं देवा. णुप्पिया) भेभानी २पात सामगीन मावाने तेने यु- देवानुप्रिय ! म तभने सुम थाय तेम ४२१. (मा पडि बंधं करेह ) भान ४२१, सा२। आममा सत ४२वी नहि. ( त एणं से मेहे कुमारे समण भगवं महावीरं वंदइ नमंसह ) त्या२ मा मेघमारे प्रभुनी ना ४ मने नमः॥२ या. (वंदित्ता नमंसित्ता जेणामेव चाउग्धंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ) बहना भने નમસ્કાર કરીને પછી જ્યાં તેઓએ ચાતુર્ઘટ ચાર ઘંટડીવાળો અશ્વ રથ મૂક્યો तो ते त्यां गया. (उवागच्छित्ता चाउग्धंटे दुरुहइ दुरुहिता महया भड. चडगरपहकरेण रायगिहस्स नगरस्स मज्ज्ञ मज्ज्ञेण जेणामेव सर भवणे तेणामेब उवागच्छइ ) त्यो भने तेसो तेना ७५२ मे भने मेसीन महामटाना વિશાળ પરિવારથી યુકત થઈને રાજગૃહનગરના મધ્ય ભાગથી રાજમાર્ગથી પસાર થઈને For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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