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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षि टोका अ, १ २० मेघकुमारजन्मनिरूपणम् स्थितः कुलनर्यादा 'तत्र पतिता धातूनाम नेकार्थत्वात् प्रचलिता यो पुत्र जन्मो त्सवहेतुका क्रिया यस्यां सा तथोक्ता तां, 'दम दिवसियं' दशदिवस कां-दशाह्निकी पुत्रजन्मोत्सवसम्बधिक्रियां कुरुत, कृत्वा इमाम् आज्ञप्तिकां-ममाज्ञां प्रन्यर्पयत । तेऽपि राजाज्ञाकारिणः कुर्वन्ति-उत्सवक्रियां भूपनि देशानुसारेण संपादयन्ति । कृत्वा-सपाद्य 'तहेव पच्चप्पिति' तथैव पत्यर्पयन्ति भूपाय निवेदयन्ति । ततः खलु स श्रेणिको राजा वाह्यायां उपस्थानशालायां सिंहासनबरगतः पौरस्त्याभिमुखः सन्निषण्ण:-उपविष्टः । तदनु किं करोतीत्याह'सइएहिय' शतकैश्व-शतमूल्यकैः शतसंख्यकैश्च, 'साहस्सिए हिय' साहसिकैश्चसहस्रमूल्यकैः सहस्रसंख्यकैश्च, 'सयसाहस्सिएहिय' शतसाहसिकश्च-लक्षमल्यकै लक्षसंख्यकैश्च, 'जाएहि' जातैः-द्रव्यसम हैरित्यर्थः, 'दाए हिं भाए हिं' दायर्मागैः= कमी आप लोग न करे-जब यह सब व्यवस्था ठीक हो जावे तो आप लोग हमे इसकी सूचना देखें । (जाव पचप्पिणंति) इस तरह राजा की आज्ञाको शिरोधार्य कर उनलोगोने वैसाही किया-और पीछे इस की खबर राजा को दे दी। (तएणं सेणिए राया पाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणव रगए पुरत्याभिमुहे सन्निसन्ने) इसके बाद वे श्रेणिक राजा बाहिरी उपस्थान शाला में पूर्व दिशा की तरफ मुख करके उत्तम सिंहासन पर जाकर विराजमान हो गये । (सइएहि य, साहस्सिएहि य, सयसाहस्सेहि य जाएहिं दाएहि य भाएहि य, दलयमाणे२ पडिमाण२ एवं च णं विहरइ) और वहां उन्होंने पुत्र जन्म के उत्सव के उपलक्ष्य में शतमूल्य वाले सौ, सहस्त्र मूल्य वाले हजार, तथा एकलक्षनूल्य वाले १लाख द्रव्यों को कि जिनका संविभाग योग्यतानुमार याचक जनों के लिये किया गया था वितरित किया तथा त्यारे त मानी २ भने सत्व माप (जाव पञ्चप्पिणंति) । प्रमाणे तनी આજ્ઞાને માથે ચઢાવીને તે લોકેએ તે પ્રમાણે જ કર્યું ત્યારબાદ રાજાને તેની ખબર આપી. (नाणं से सेणिए राया बाहिरियाए उवट्टाणसालाए सीहासण वरगए पुरत्याभिमुहे सन्निसन्ने) त्या२मा ४ि२० मा२नी ध्येरीमा उत्तम सिंहासन S५२ दिशा त२५ मां रीने विमान प्या. (सइएहिय, साहस्सिएहिय, सगसोहस्सेहिय, जाएहिंय दाएहिय, दलयमाणे१ पडिच्छेमाणे१ एवं च णं बिहरह) भने त्यो श्र िये पुत्रमोत्सवनी मुथालीमा मे सोनी भितना સ, એક હજારની કિંમતના હજાર, તેમજ એક લાખની કિંમતના દ્રવ્ય ને-કે જેનું વિભાજન યાચકેની યોગ્યતા મુજબ કરવામાં આવ્યું હતું–વહેંચ્યા. ઉત્સવમાં નિમં For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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