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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनगारधर्मामृतवर्षि टीका अ, १ २० मेघकुमारजन्मनिरूपणम् २५७ कुत्सितार्थकः, कुदण्डकरणस्य रानधर्माभावात, 'अपरिमं' अधरिमां-अविध मानं धरिमंऋणद्रव्यं यस्यां सा तां, उत्तमर्णाधमाभ्यां परस्परं तदृण निवारणार्थ न कलहनीयं किन्तु तद्र द्रव्यं राज्ञा देयं भविष्यतीति भावः। अधारणिज' अधारणीयाम्-अविद्यमानो धारणीयोऽधमों यस्यां सा, तांकेनापि पुरुषेण कस्मादपि ऋणं न ग्राह्य, तस्मै ऋणग्राहकाय राज्ञा धनमपुन ग्रहणाय दास्यते इति भावः । 'अणु यमुइंग' अनुकूताः-अनु-अनुक्रमेण अवि च्छेदेन उद्भूताः उत्साहपूर्वकं वादिताःमृदङ्गा वादकैः यस्यां सा तां तथोक्ताम्, 'अमिलायमल्लाम' अम्लानमाल्यदामां-तोरणादि यथायोग्य स्थानेषु विविधवर्ग कुत्सित अर्थ का वाचक नहीं हैं-किन्तु अल्प अर्थ का बाचक हैं १० दिवस तक दंड और कुदंड दोनो माफ किये जाते हैं । (अघरिम) १० दिवस पर्यन्त राज्य की तरफ से ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि कर्जदार और कर्ज देने वाले दोनों व्यक्ति परस्पर न लडें । कर्जदार के ऊपर जितना भी कर्ज देने वाले का कर्जा होगा-वह राज्य की तरफ से उसे अदा कर दिया जावेगा। (अधारणिज्ज) किसी भी प्रजाजन को यदि पैसे की जरूरत पड़ती हैं तो वह किसी भी साहूकार से ऋण न ले। १० दिवस तक ऐसी व्यवस्था राज्य की ओर से की गई है कि उसे आवश्यकतानुसार द्रव्य राज्य देगा। और उसे वह पुनः वापिस न लेगा (अणुद्धयमुइंग) तथा १० दिवस पर्यन्त ऐसी भी व्यवस्था कर दी जावे कि जिससे उत्साह पूर्वक निरन्तर बाजे बजाने वाले बाजे बजाते रहें। (अभिलायमल्लदाम) तथा जो तोरणादि बान्धने के स्थान हैं उनमें विविध કુત્સિત અર્થને સૂચવનારો નથી, પણ અ૫ (થ) અર્થને સૂચવનાર છે. આજથી स हिवस सुधी ४ मने मुह मन्ने भा५ ४२वामां आवे छ. (अधरिमं) ४२દિવસ સુધી રાજ્ય તરફથી આ જાતની વ્યયવસ્થા પણ કરવામાં આવે છે. ત્રણ લેનાર અને ઋણ આપનાર બંને વ્યક્તિ એક બીજાથી લડે નહિ. ત્રાણ લેનાર ઉપર જેટલું * मापना२नुशे ते पधु शल्य त२३थी यूवामा माशे. (अधारणिज्ज) કોઈ પણ પ્રજાના માણસને જે પૈસાની જરૂર જણાય તો તે કઈ સાહૂકાર પાસેથી ઋણ ન લે, પણ દસ દિવસ સુધી એવી વ્યવસ્થા કરવામાં આવી છે કે તેને આવશ્યકતા મુજબ ધન રાજ્ય તરફથી આપવામાં આવશે. અને તે ફરી પાછું નહિ લેવામાં આવે. (अणु यमुइंग) तेभ इस हिवस सुधी भाजतनी व्यवस्था पा ४२वामां आवे छे थी Sत्सा पूर्व alariuon सतत alaritalsdi ०४ २९. अभिलायमल्लयाम) तमा તેરણ વગેરે બાંધવાની જગ્યાએ અનેક જાતના સુવાસિત પુની માળાઓ લટકાવવામાં આવે For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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