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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९१ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. सू. ६ धारिणीदेवी स्वप्नस्वरूपनिरूपणम् मलय=नवतक-कुशक्तलिम्ब - सिहकेशर प्रत्यवस्तृते अस्तरजस्कैः =अपगतरजः कणैः निर्मलैः मलय नवतक-कुशक्त लिम्बसिंह केशरैरास्तरणविशेषैः अवस्तृते क्रमेणाच्छादिते, तत्र मलय देशोत्पन्न सूक्ष्मसूत्रनिर्मित आस्तरणविशेषः, नवतकः = विशिष्टर्णा निर्मितः, कुशक्तः = देशविशेषोत्पन्नः, लिम्ब= लघुवयस्कोर भ्रलूनोर्णानिर्मितः, सिंहकेशरः=सिंहसटासदृशो जटिल : 'गलिचा' इति भाषायाम् एतेषामितरेतरद्वन्द्वः । 'सुविरइयरयत्ताणे' सुविरचितरजखाणे - सु=सुष्ठु सम्यगुरूपेण विरचितं= विस्तारितं रजस्त्राणं = रजोनिवारक उपरितनाच्छादन विशेषो यस्मिन् ते तथा तस्मिन् 'रतंय' रक्तांशुकसंवृते दंशमशकनिवार करक्तस्रावृते 'मच्छरदानी' इति भाषायाम्, 'सुरम्मे' सुरम्ये = मनोरमे । 'आइणगरूय बूरणवणीयतृलफासे' आमलय से, नवतक से, कुशक्त से, लिम्ब से, एवं सिंह केशर से जो क्रमश ढकी हुइ है । मलयदेशोत्पन्न सूक्ष्मडोरों से निर्मित वस्त्र का नाम मलय हैं। विशिष्टप्रकार की ऊन से बने हुए वस्त्र का नाम नवतक है। देश विशेष में बने हुए वस्त्र का नाम कुशक्त है। सिंह सटाके सदृश जटिल वस्त्र का नाम सिंह केशर है। इसे हिन्दी में गलीचा कहते हैं। ये सब वस्त्र उसके ऊपर एक २ करके तरा ऊपर बिछे हुए थे । (सुविरइरत्ताणे ) धूली आकार सेज को मलिन न करदे इस ख्याल से उसके ऊपर एक और धूलिनिवारक वस्त्र बिछा हुआ था । ( रतंयसंबुए) सोने वाले को देश मंशक बाधा न पहुँचा सके इसलिये उस शय्या पर लालरंग की एक मच्छरदानी भी तनी हुइ थी । (सुरम्मे) यह शय्या बडी सुन्दर होने के कारण मनको हरण करनेवाली थी । (आइणकेसर पच्चुत्थए अनुदुभे ने શય્યા ધૂળ વગરના મય નવતક કુશકત લિમ્બ અને સિંહ કેશરવડે આવેષ્ટિત થયેલી છે. મલય દેશમાં ઉત્પન્ન થયેલા ઝીણા દારાએ વડે મનાવવામાં આવેલા વજ્રનુ નામ ‘મલયજ’ છે. વિશેષ પ્રકારના ઊન વડે બનાવવામાં આવેલા વસ્ત્રનું નામ ‘નવતક’ છે. એક દેશ વિશેષમાં મનાવવામાં આવેલા વસ્ત્રનું નામ કુશકત છે. સિંહ સટાના જેવા જટાવાળા [જટિલ વસ્ત્રનું નામ સિંહ કેશર છે. એને ફારસીમાં ‘ગલીચા’ કહે છે. આ બધા વસ્ત્રો તેના ઉપર એક ઉપર मे पाथरवामां आवेलां हृतां (सुविरइयरयत्ताणे) धूजथी सेन भसिन न थ लय सेना भाटे खेड जीन्नु रन्नेनिवार वस्त्र ढांडवामां आवेषु तु . ( रत्तंसुय संबुर) સૂઈ જનારને ડાંસ-મચ્છર બાધિત ન કરે એટલા માટે તે સેજ ઉપર લાલરંગની એક भय्छरहानी पशु ताशेसी हुती. ( मुरम्मे) हुन सरस होवाथी या शय्या भनने आर्श्वनारी हती. (आह्णगसूयबूरणवणीय तुल्लफासे) हरंशु वगेरेना याभडाथी For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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