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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका स. ६ धारिणीदेवीस्वप्नस्वरूपनिरूपणम् ९ धुतिगुणैः-द्युतिभिः स्वस्य सर्वदिक प्रसरचाकचिक्यप्रकाशपुञ्जरूपाभिः कान्ता. भिः, गुणैः सौन्दर्यादिभिः 'सुरवरदिमाण वेलंविए' सुरवरविमानविडम्बके - सुरवरविमानस्य-महद्धिकदेवविमानस्यापि विडम्बकं विडम्बनाजन तिरस्कारकर-मित्यर्थः, तस्मिन्, स्वकीयपरमशोभया विमानतोऽप्युत्कर्षतया वत माने-इतिभावः, एतादृशे 'वरघरे' वरगृहे रम्यप्रासादे। अथ शय्यावर्णनमाह'तसि' इत्यादि, 'तंसि' तस्मिन् वक्ष्यमाणगुणयुक्ते 'तारिसगंसि' तादृश के पूर्वोपार्जितपरमपुण्यप्रकर्षवतामाणिनामुचिते 'सयणिज्जं सि' शयनीये-शय्यायाम्, कीदृशे शयनीये ? इति विशेषणान्याह-'सालिंगणवट्टिए' इत्यादि, 'सालिगणवहिर' सालिङ्गनवर्तिके-आलिङ्गनवतिः शरीरममाणोपधानं, तया सह वर्तते यत्तत्सालिजनवत्तिकं, तस्मिन् शरीरप्रमाणायतोपधानसहिते । 'उभओ बिब्बोयणे' उभयतो बिब्बोयणे-उभयत-शिरश्चरणस्थापनस्थानद्वये 'बिब्बोयणे' इतिदेशीयशब्दः उपधानार्थकस्तेन बिब्बोयणे उपधाने यत्र तत्तस्मिन् उपर्यधउपधानमण्डि ते, अत एव 'दुहनो उन्नए' द्विधात उन्नते-द्विधात-मस्तकभागे चरणभागे च उन्नते और क्या कहें (जुड़गुणेहिं सुरवरविमानलंविए) यह शयनागार अपने सर्व दिशाओं में फैले हुए चाक चिक्यमसारीरूप पुंजद्वारा तथा सौन्दर्य आदि गुणों द्वारा महर्द्धिक देव विमान की भी तिरस्कार कर रहा था अर्थात् जो अपनी परम शोभा से देवों के विमान से भी अधिक शोभा वोला है रिसे शयनागार में) (तारिसगंसि) पुण्यवान के सोनेलायशय्या में (तसि) उस (सयणिज्जसि) शय्या पर (शय्या का वर्णन इस प्रकार है) (सालिंगणवट्टिए) कि जो शरीरकी लंबाई के बराबर लंबे तकिया से युक्त है (उभओ बिब्बोयणे) तथा जिसके दोनों तरफ-शिर और पौरों की तरफ-दो तकिये और छोटे २ रखे हुए हैं इस लिये जो (दुहओ उन्नए) भाट धारे शुडीये. (जागणेहि सरवरं विमानलंबिए) ॥ शयनागार अधी દિશાઓમાં ચોમેર પ્રસરેલા ચમકતા પ્રકાશ પુંજથી તેમજ સૌંદર્ય વગેરે પિતાની વિશેષ તાઓથી મહર્દિક [બહુજ કીંમતી] દેવ વિમાનની પણ અવગણના કરતું હતું. અર્થાત્ તે પિતાની પરમ શેભાથી દેવના વિમાને કરતાં પણ વધારે સુંદર શોભતું હતું. એવા शयनागारमा (तारिसगंसि) पुण्यशालीमान शयन योञ्य शय्यामा (तसि) ते (सयणिज्जंसि) शय्या ५२-सूध २डी हुती. (शय्यानुवर्णन २ प्रमाणे छ.) (सालिंगणवट्टिए) शरीरनी माना प्रभाना माशीवी छ, (उभओ बिब्बोयणे) अने भनी भन्ने मान्य-माथा भने पानी त२५-नाना माशी भूसा छ, मेथी (दहओ उन्नए) मान्न थी 30 यी छ. मने (मज्झे १२ For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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