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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बस इन्द्रभूति तैयार हुए। बारह तिलक किये, सुन्दर पीताम्बर तथा स्वर्ण की जनेऊ धारण की। पीछे पांच सौ विद्यार्थी-परिवार चल रहा है। किसी के हाथ में कमंडल है, कोई दूर्वाधास लिये है तो किसी के पास पुस्तकें । इन्द्रभूति के मन में उथल पुथल मच रही है कि 'मैंने कौन सी विद्या प्राप्त नहीं की है ? व्याकरण, साहित्य, न्याय, वेद, ज्योतिष-सभी में मैंने पर्याप्त परिश्रम किया है। लाट देश के वादी तो बिचारे पता नही कहाँ भागे, द्राविड़ के वादी तो लज्जित ही हो गए। तिलंग वाले तो संकुचित होकर तिल जैसे हो गए तथा गुर्जर देश वाले तो जर्जरित ही हो गए।' यह सब क्या है ? अपनी स्थिति की आलोचना और कोई ऐसी पूर्व भूमिका, कि इतना होते हुए भी यदि सामने वाले सर्वज्ञ के पास कोई नई एवं आश्चर्यपूर्ण वस्तु मिले तो वहां झुक पड़ना। सोचते ही सोचते मार्ग पूरा हो गया और यकायक प्रभु के दिव्य समवसरण के सामने आ खड़े हुए। प्रभू को देखकर इन्द्रभूति चौंकते हैं :-ऊपर देखते हैं तो क्या दीखता है ? अनुपम, अद्वितीय, अवर्णनीय, कल्पनातीत सौन्दर्यशाली रूप धारण करने वाले, इन्द्रों द्वारा जिनके चंवर डुलाये जा रहे थे, और देवांगनाएं जिन्हें एकटक से निरख रही थीं, ऐसे त्रिभुवनगुरु चरम तीर्थपति श्री महावीर परमात्मा को देखते ही इन्द्रभूति सोच में पड़ जाते हैं कि ये कौन होंगे ? पहिचानने का प्रयत्न करते हैं। क्या ये विष्णु हैं ? नहीं, विषा तो श्याम हैं और ये तो सुवर्ण वर्ण की काया वाले हैं। तो ब्रह्मा होंगे ? ब्रह्मा तो वृद्ध हैं और ये तो युवा लगते हैं। तो क्या इन्हें शंकर कहूं ? शंकर तो शरीर पर राख मलते है और हाथ तथा गले में सर्प रखते हैं जब कि इनमें ऐसी एक भी बात नहीं है । तो क्या मेरु होंगे ? नहीं, मेरु तो कठिन है जब कि इनकी काया तो मक्खनपुञ्ज के समान कोमल एवं सुकुमार है। तब तो ये सूर्य भी नहीं हो सकते क्योंकि सूर्य तो देखने वाले को प्रखर ताप से तप्त कर देता है और इन्हें तो जैसे जैसे देखते हैं वैसे वैसे अधिक शीतलता का अनुभव करते हैं। बस, तब तो ये चंद्र होंगे। चंद्र का तेज सौम्य कान्तिमय होता है । परन्तु For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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