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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रभु की लोक प्रशंसा : इंद्रभूति द्वारा वाद की तैयारी :-लोग सर्वज्ञ श्री महावीर देव को नमन-वंदन कर लौट रहे हैं। इन्द्रभूति उनसे पूछते हैं, 'क्यों देख पाए उन सर्वज्ञ को ? कैसा है वह ?' परन्तु यहां तो अतिशय सुन्दर अनुत्तरवासी देवताओं की अपेक्षा भी प्रभु का अनंतानंत-गुना सुन्दर रूप, देव-दुदुभि, पुष्पवृष्टि, छत्र, भामंडल आदि पाठ प्रतिहार्य, वाणी के ३५ गुण, यह सब भव्य शोभा लोग देख पाए हैं, अतः हृदय में उनके प्रति मुग्धता, आकर्षण और प्रमोद अपरंपार है, फिर उत्तर में प्रभाव किस बात का हो ? लोग कहते हैं 'यदि तीनों लोक इन सर्वज्ञ प्रभु के गुण गिनने बैठ जाएं, पराद्ध से भी परे गणना चली जाय और प्रायु का अन्त ही न हो तभी प्रभु के सभी गुणों की गणना हो सकती है।' इन्द्रभूति यह कैसे सुन सकते हैं ? वे चौंक उठे और बोले-वाह ! इसने तो लोगों को भी ठग लिया है। अब तो मैं एक पल भर भी नहीं रुक सकता। अभी ही जाता हूँ और उसे वाद में परास्त कर उसके मद और छल को चूर कर देता हूँ। जिस वायु ने बड़े बड़े हाथियों को उछाल फेंका, उसके लिए एक रुई के फाये को उड़ाना कौन सी बड़ी बात है ? पता नहीं सारे तिलों का तेल निकालते यह एक तिल कहां से शेष रह गया ? वादियों को जीत कर मैंने वादियों का दुष्काल कर दिया तब फिर यह वादी किस ग्राम में छिपा रह गया ? कुछ भी हो, मुझे जाना ही पड़ेगा'। इस प्रकार सोच कर चलने की तैयारी करते हैं, पर इस बात का पता अग्निभूति को चल जाता है, और वे कहते हैं, 'भाई, प्राज तुम्हारे जाने की क्या आवश्यकता है ? एक कमल को उखाड़ने के लिए क्या ऐरावत हाथी की आवश्यकता होती है ? प्राप बैठिये, मैं जाकर जीत पाता हूँ। इन्द्रभूति कहते हैं-'अरे तू तो क्या, पर यह मेरा एक विद्यार्थी भी उसे जीत सकता है, परन्तु मुझ से यह दूसरे सर्वज्ञ का नाम सहन नहीं होता, इसीलिए मैं जाता हूं। उसे पराजित किये बिना अब रहा नहीं जा सकता। सती सौ वर्ष शील पालन करे परन्तु एक बार भी शील भंग करे तो वह सती नहीं । इस प्रकार यदि एक प्राधा भी वादी मुझ से पराजित हुए बिना रह जाय तो मेरी मान हानि हो जाय ।' For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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