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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६४ freसम्बन्धि प्रकीर्णक । और (२४) वे प्रक्रम से कोष्ठों को उड़ा देओ ४य + ६ + १८ = १२० - १२ + ३१ तो भी पहिले जैसे छेदगम से पत www.kobatirth.org ७० । इस प्रक्रम में विषम पत्तों के छेदगम के कुछ उदाहरण लिखते हैं । इन में यर इत्यादि अक्षर धन संख्याओं के द्योतक जानो । (२) यह सिद्ध करो कि य उदा० (१) यह सिद्ध करो कि + यह सर्बदा २ से बड़ा होता है। यहां > बा २ + छेदगम से, 2 + '> वा < २यर परंतु (३०) वे प्रक्रम में सिद्ध किया है कि य° + ₹ > २ यर हुए यहां छेदगम से, यू + > २ यह सिद्ध हुआ । स्पष्ट इस से है कि कोइ भित्रपद और उस का व्यस्तपद अर्थात् उस का १ में भाग देने से जो लब्ध होगा इन दोनों का योग कभी .२ से छोटा नहीं हो सकता । र पक्षान्तरनयन से परन्तु थे वैसे हि हुए | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir + + >वा < य+र a2+c2 >al< at (a+1) बा, ( य े-यर + 2) (य + र) > बा < यर (य + र) य - घर + १' > बा < पर य+१> वा <२ यर य' + ₹ > २ यर - यह य +र इस से अधिक होता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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