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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org freeम्बन्धि प्रकीर्णक 保成建 बिगाड़ के उन के छेद वा छेदों को उड़ा देते हैं उस क्रिया को छेदगम कहते हैं उस का प्रकार यह है । उद्दिष्ट दो पक्षों में जो भित्रपद होगा उस के छेद से वा अनेक भित्रपद हों तो उन के छेत्रों के गुणनफल या लघुतमापवर्त्य से उन दोनों पक्षों को गुण देओ । इस से सब छेद उड़ जाते हैं । इस छेदगम से पक्षों का साम्य वा वैषम्य नहीं पलटता । इस की उपपत्ति दूसरी और पांचवी प्रत्यक्ष बात से स्पष्ट है । उदा० (१) य + यू. + यू – – ३ य -- उदा० (२) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir = ३ + १० यहां छेदगम करो । इस में छेदों का लघुतमापवर्त्य १२ है इस से दोनों उद्दिष्ट पत्तों को गुण देने से, १२८ + १३८–१२८ ३६ य + 92°, इस में प्रत्येक भित्रपद को लघुतम रूप देने से, १२८ + ६य - ४यय + १२०, सब छेद उड गये । व य+ + य + ३, य + ३ = ५ - ४ - इस में छेदों को उड़ा देओ । ४ यहां पक्षों को २४ से गुण देने से, ४य + ६ + १८ = १२० – १२८ + २१ । यहां जो भित्रपद ऋण चिह्न से जुड़ा हुआ है उस के अंश के सब पदों का चिह्न पलट दिया है क्यों कि उस अंश को घटा देना है । अथवा यदि उद्दिष्ट पत्तों को इस रूप में लिखो य+ठे (य + ३ = ५ - ६ (४ य - 9) क्षेत्रओ और फिर इन को २४ से गुण ४य + ६ (य + ३) = १२० - ३ (४ य - ७) अर्थात, ४य + (६ य +१८) - १२० - (१२८ - २१) For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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