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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुन्यपालके स्वामका अर्थ दीपमालि. भद्र नामका राजाथा उसके महाबुद्धिनिधान विचक्षण सर्वकार्यमें कुशल सुवुद्धिनामकामंत्रीथा ॥ एकदा का व्या. हप्रस्तावमें राजसभामें लोकदेवनामका नैमित्तिया आया ॥ तब मंत्रीने पूछा हेनैमित्तकचूडामणेः! आगामि * कालका शुभाशुभ कहो ॥ तब नैमित्तियेने अपना निमित्तशास्त्र देखके कहा हे मंत्रीश्वर ! आजके दिनसे एक महीनेके बाद मेघवृष्टि होगी ॥ उसका जल जो पीवेगा वह मनुष्य गहलाहोजायगा ॥ उसके बाद कितनेदिन जानेसे शुभ वृष्टि होगी ॥ वह जल पीनेसे सब अच्छे होजायंगे ॥ ऐसा नैमित्तियेका वचन सुनके राजा और है मंत्रीने नगरमें उद्घोपणा कराई ॥ सब लोगोंको पानीका संग्रह करना ॥ एक महीनेके बाद वर्मात होगा उसका पानी पीना नहीं ॥ बादमें सब लोगोंने राजवचन सुनके पानीका संग्रह किया ॥ वाद नैमित्तियेके कथनानुसार ४ वर्षा हुई ॥ तब सब लोगोंने वर्षाका पानी पिया नहीं। कितने दिन गयोंके बाद पानी पूर्वसंग्रहीत खुटनेसे राजा है और मंत्रीको छोड़के सब सामन्तादिकने नई वर्षाका पानी पिया ॥ उससे सब शहरके लोग गहले हो गये। सब लोग इकट्ठे होके नग्न हो गये नांचे हसे और कुचेष्टाकरे ॥ राजा मंत्रीविना सबलोग वैसा करताहुआ और राजा मंत्रीको वैसी चेष्टा करताहुआ नहीं देखके विचारने लगे राजा मंत्री गहले होगये हैं। अब अपना काम | कौन करेगा इसलिये राजा मंत्रीको उठाकर दूसरा राजा मंत्री करना ॥ ऐसा गहला लोगोंका विचार जानके मंत्रीने राजासे कहा ये लोग अपनेको उठादेंगे और दूसरा राजा मंत्री करेंगे, गहले लोग हैं क्या विश्वास है प्राणोंसे SAMROCCURRECASALUSARESS |३४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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