SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AIGARSAIRAA रहितभी करदें ॥ तब राजा मंत्रीसे बोले कोई उपाय करो जिससे अपनी रक्षा हो तब विचारके मंत्रीने कहा हे महाराज और कोई उपाय नहीं है अपने जानके गहले होजावें तब राज्य रहेगा और कोई उपाय नहीं है। तब राजा मंत्री अपनी रक्षाके वास्ते जानके गहले होके उन लोगोंमें जा मिले ॥ कितने दिनके बाद सुवृष्टिभई तब नवीन जलके पीनेसे सब लोग स्वस्त भया । इसी प्रकारसे दुषमकालमें क्रियावान गीतार्थ साधुभी अपना निर्वाह करनेके लिये शिथिलाचार्योंके साथमिलके रहेंगे तब उनके समयकानिर्वाह होंगा ऐसा आठवे खप्नेका फल सुनके पुण्यपाल राजा ग्रहस्थाश्रमसे विरक्त होके श्रीवर्धमानखामीके पास दीक्षा लेके चारित्रपालके मोक्ष | है गया ॥ वहां कईक श्रीभद्रबाहुखामीने कहे हुए स्वप्नोंका व्याख्यान करे है ॥ सूत्र ॥ PI तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिपुरे नाम नयरे होत्था जहाणं चंपा तहाभणियवा तत्थणं पाडलि पुरे नयरे पाडलनाम वणसंडे होत्था, तत्थणं पाडलिपुरे चन्दगुत्ते नाम राया होत्था तेणं कालेणं तेणं समएणं चन्दगुत्त नाम राया समणोवासगो अभिगयजीवाजीवो जाव अट्रिमिजा पवयण रागरत्तो अह अण्णया कयावि पक्खियपोसहम्मि पडिजागरमाणस्स सुइ पत्तेसु ओहीरमाणे ओहीरमाणे ॥ सोलस सुविणादिट्ठा पासित्ता, चिंता समुप्पन्ना अह कमेणदिवायरउट्ठिये पोसहं N HORAS For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy