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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवाहिका राजाका ऐश्वर्य छोड़दिया इससे राज्यादिकःका क्या करूं अब हे खामिन् जो पर्वभंग नहीं करो हो ॥ तो सूर्ययशा. व्या० तू मेरे आगे श्रीयुगादिदेवका मंदिरगिरवाओ ऐसा उर्वशीका वचन सुनतेही राजा वजाहतके जैसा मूळप्राप्तहोके दराजा कथा चैतन्य नष्ट हो गयाहो ऐसा पृथ्वीपर गिरा उसीवक्त मंत्रीके आज्ञासे आकुलऐसे परिवारके लोगोने शीतलजलादि छांट॥२९॥ नेसे हवावगैरहः करनेसे राजाको सावचेतकिया वाद सूर्ययशाराजा अपने सामने बैठी भई उर्वशीको देखके ६ कुपित हो के बोला हे अधमे यह तेरा आचार वचन करके मेरे सामने अपना अधमकुलपना वतावेहै जिसकार-18 है णसे आहारके जैसा उद्गार होवे है तैं विद्याधरकी पुत्री नहीं है किंतु चांडाल की पुत्री मालूम होवे है। मैंने मणिके भ्रमसे काचका टुकडा ग्रहणकिया ॥ जो देव तीनलोककाखामी तीनलोककरके बंदित ऐसे परमे||श्वरका मंदिर कोई गिरासके है ऐसा कभी होसकेहै ॥ किंतुकभी नहीं होवे ॥ इससे हे स्त्री मैं अपने वचनोसे बंधाहु- आहूं अनृणीहोना चाहता हूं। इसलिये धर्मका लोपविना और मांग" पर्व लोप, चैत्यका विनाश, मैं सर्वथा नहीं करूं ॥ ऐसा राजाका वचन सुनके उर्वशी भी थोडी हसके और राजासे बोली ॥ हे नाथ और मांग और मांग ऐसा आपका वचन दूर जाओ ॥ जो यह तुम नहीं करो हो तब अपने पुत्रकामस्तककाटके जल्दी मेरेको ॥२९॥ देओ॥ बाद राजा विचारके कहते भये हे सुलोचने मेरा पुत्र मेरेसे उत्पन्नभयाहै।इसलिये मेरामस्तक तेरे हाथमें है ॥ पुत्रका मस्तक देना क्याबड़ीवातहै मैं अपनामस्तकदेऊं ॥ ऐसा कहके राजा हाथमे खड्ग लेके For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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