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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीव मोक्ष गएहैं सम्पूर्ण तीर्थों में प्रधान है उसका इक्कीस नाम हैं उन्होंका ध्यान करना चैत्रीपूर्णिमाके दिन शुद्ध भावसे उपवास करके जिनमंदिरमें सात्रपूजा महोत्सवादि करना सर्वतीर्थंकरोंकी पूजा करनी सद्गुरुःके मुखसेर |चैत्रीपौर्णिमाका व्याख्यान सुनना दीनहीन प्राणियोंको दान देना और शीलपालना जीवरक्षा करनी विधिपूर्वक सिद्धाचलजीका पट्ट ऊंचे स्थानपर स्थापके मोती, तंदुलवगैरहः उत्तमपदार्थोंसे बड़ी पूजा करके अर्थात् दश वीस तीस चालीस पचास तिलक वगैरहः करके पंचशकस्तवादिदेव वंदनाकरके शुभध्यानसे दिनरात्रिका कृत्य करके , दूसरे दिन पारनेके समयमें मुनियोंको दान देके पारना करना पन्द्रह वर्षतकप्रतिवर्ष व्रत आरधना पीछे यथा-/ शक्ति उजवना करना ऐसे करनेसे निर्धन धनवान् होताहै पुत्र, कलत्र, सौभाग्य, कीर्ति, देवसुखक्रमसे शिव सुखकीप्राप्तिः होवे तथा स्त्रियोंके पतिवियोग न होवे रोग शोक वैधव्य दौर्भाग्य मृतवत्सा परवशपना इत्यादिक न होवे इसके आराधनसे स्त्री पतिवल्लभ होवे और विषकन्या भूत प्रेत शाकिनीग्रहादिक दोष नष्ट होवे जादा कहनेसे क्या भावसे आराधीभई चैत्रीपौर्णिमा मुक्तिः सुख देवेहै । ऐसा गणधरके मुखसे सुनकर वह बाला| हर्षित भई और बोली मैं यह व्रत करूंगी तब माताके साथ वह कन्या गुरूको नमस्कार करके घरजाके अवसरमें| चैत्रीपौर्णिमाका आराधन करतीभई तब वह कन्या मातासहित सुखिनी भई ॥ विषयविकारकीभी शांतिभई और मोक्षपदमें मन भया प्रतिवर्ष व्रतकरतेहुए क्रमसे व्रतपूर्ण होनेसे शुभ भावसे उद्यापन किया श्रीपुंडरीकगणधरका 8 से करनेसे निर्धन व पारना करना पन्द्रह वर्षतयान दिनरात्रिका कृत्य करके For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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