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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ८१ ॥ दीवा० ध्यान और श्रीसिद्धाचलकी यात्रा करनेकर ऋषभदेवखामीका स्मरण करके अंत में अनशनसहित कालकरके सोधर्म व्याख्या० है देवलोक में देवपने उत्पन्न भई वहां देवसम्बन्धी सुख भोगवके वहांसे च्यवके महाविदेहक्षेत्र में सुकच्छविजय वसन्तपुरनगर में नरचन्द्र राजाके राज्य में ताराचन्द्र सेठके घर में तारा नामकी भार्याके कुक्षि में पुत्रपने उत्पन्न हुआ ॥ पूर्णचन्द्रनाम दिया बहोतर कला में कुशल भया पन्द्रह करोड़ द्रव्यका खामी भया पन्द्रह स्त्रियोंके पन्द्रह पुत्र हुए | इत्यादिसंसारिक सुख भोगवेके और चैत्रीपूर्णिमाका आराधन करके अंत में श्रीजयसमुद्रगुरुके पास दीक्षा लेकर और शुक्लध्यानसे केवल ज्ञान पाके मोक्षगया इसप्रकार से चैत्रीके आराधनमें बहुत लोग परमानन्दसम्पदा पाया है तथा | श्री ऋषभदेवखामी विहार करते हुए श्रीशत्रुंजय तीर्थपर फाल्गुनसुदी अष्टमी के दिन समवसरे देवोंने समवसरन किया भगवान् समवसरन में विराजमान भए देशना में शत्रुंजयका माहत्म्य वर्णन किया तब पुंडरीकजी गणधर महाराजने सवा लाख लोक प्रमाणे शत्रुंजय माहातम ग्रंथरचा बाद श्री ऋषभदेवस्वामीने पुंडरीकजी गणधरसे कहा तेरा निर्वाण इस तीर्थ के प्रभाव से यहीं होना है ऐसा कहके भगवान् विहार करगए वाद श्रीपुंडरीकजी गणधर पांचकरोड़मुनियोंके परिवार से फाल्गुन पौर्णिमाको संलेखना करके अनशन किया और चैत्री पौर्णिमाको केवलज्ञान पायके पांच करोड मुनियोंके साथ मोक्षगए इसीकारणसे चैत्रीपूनमपर्व प्रसिद्ध हुआ है और शत्रुंजयतीर्थपर श्रीदशरथराजाके पुत्ररामचन्द्र और भरत मोक्षगए हैं और श्रीकृष्णवासुदेव के पुत्र साम्बः प्रद्युम्नः साढ़े आठ लाख मुनियोंके साथ For Private and Personal Use Only चैत्रीपौर्णिमाका व्याख्यान. ॥ ८१ ॥
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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