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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandi नामक पुरोहित, छलसे अपने राजा जितशत्रुको कारागृहमें डालकर, आप राज्य करने लगा। अन्यदा माताकी प्रेरणासे दत्त आचार्यके पास जाकर उन्मत्त भावसे और धर्मकी ईर्ष्यासे क्रोधके साथ श्रीगुरुसे बोला, यज्ञका 8 क्या फल हैं, वाद आचार्य धैर्य अवलंबन करके बोले यज्ञ हिंसारूप है और हिंसाका फल नरक है यह सत्यही कहा, तब दत्त बोला इसकी क्या प्रतीति हैं, आचार्य बोले, तें सातवें दिन कुंभीमे पकेगा ऊपरसै कुत्ता खावेगा। वाद दत्त बोला इसमें क्या प्रत्यय है, आचार्य बोले उस दिन तेरे मुखमें अकस्मात् विष्ठा पडेगी, तब हुंकारसहित दत्त बोला तें कैसे मरेगा, आचार्य बोले में समाधिसे मरूंगा और सद्गतिजाउंगा, वाद अपणे सुभटोंसे आचार्यकुं रोकके दत्त घर जाके प्रच्छन्न रहा, मतिभ्रमसे दत्त सातवें दिनको आठवा दिन मानता घोडेपर सवार होके आज आचार्यके प्राणोंकी सांति करके आईं असा विचारके चला उतने एक माली कार्याकुलसै राजमार्गमें मलोत्सर्ग करके फूलोंसे ढक दिया उसी मार्गमें दत्त आया तब घोडेके खुरसे उछलके विष्ठा मुखमें 8 पडी उसके खादसे चमत्कार पाया सातवां दिन मानता खेदातुर होके पीछा पलटा तब इसका दुराचारसे खेदातुर भया मूल मन्त्रियोंने जितसत्रु राजाकुं पिंजरेसे निकालके पाटपर बैठाय दत्तकुं छलसे पकडके राजाकुं दिया राजाने कुंभीमें डालके नीचे अग्निजलवाके ऊपरसे कुत्ता छोडके कदर्थना करवाई दत्त मरके नरक गया, आचार्यका बहुत सत्कार किया । इतने कहनेसे सत्यवादपर कालिकाचार्यका दृष्टांत कहा ॥३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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