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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra चातुमासिक ॥ ६ ॥ 64 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समासपर चिलातिपुत्रका कथानक कहते है । राजग्रहनगर में धनदत्तसेठ था उसके ४ पुत्र और १ सुसमा नामकी पुत्री थी चिलातिनामका दास था एकदा दासको सुसमापुत्री के साथ दुराचार करते देखके दासकुं निकाल दिया तब चिलातिपुत्र चोरोंकी पल्लीमें जाके रहा एकदा चोरोंकी घाड लेके राजगृह आया सेटके घर में प्रवेश किया चोरोंने धन लिया चिलातिपुत्र सुसमाकन्या को लेके चला सेठ पुत्रों सहित पीछे चला सेठकों नजीक आया देखके सुसमा कन्याका मस्तक काटके एकहाथमें खड्ग दूसरे हाथमें मस्तक लेके पर्वतपर चढा सेठ यह रूप देखके खेदातुर होके पीछा पलटा चिलातिपुत्र आगे जाता हुवा काउसग्ग में रहा मुनिकों देखा और बोला रे मुण्ड धर्म कहो अन्यथा इस खगसे तेरा वि माथा काहूंगा, तब मुनि नमो अरिहंताणं कहके आकाश मार्गसे जाते हुए १ उपसम, २ विवेक, ३ संवर, यह तीन पदात्मक धर्म हे कहके गये वाद चिलातिपुत्र तीन पदोंका | अर्थ विचारा अपने में एकविपदका अर्थ नहि देखता मुनिके ठिकाने काउसग्गमें खडा रहा तीन पदका अर्थ हासिल करता रहा लोहिके गंधसे लालकीडियोंने शरीर चालणीप्राय कीया तीसरे दिन काल करके देवलोक गया | इतने कहनेकर समासपर चिलातिपुत्रका दृष्टान्त कहा ॥ ४ ॥ अब संखेप सामायकपर लौकिक चार पंडितोंका दृष्टान्तकहते हैं | वसंतपुर नगरमें जितशत्रु राजाकी एकदा शास्त्रश्रवणकी इच्छा भई ४ पंडितोंसे कहा तब पंडितोंनें ४ लाख लोक बनाके राजासे कहा तब राजा बोले For Private and Personal Use Only व्याख्या म. ॥६॥
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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