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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चातु. मासिक vot बारह वर्षके बाद देवताके वचनसे श्रीमहाबीर खामीके पास दीक्षा लेकर वे बहुत देशोंमें विहार करते हुए एकदा व्याख्याराजगृह नगरमें भिक्षाके लिये फिरे हुए सोनारके घर पर आए । वहां सोनार मुनिको देखकर भिक्षा लानेको नम् |घरके भीतर गया। पीछे से वहाँ पडे हुए श्रेणिक राजाके देवपूजाके वास्ते बनाये हुय एक सौ आठ (१०८) सोनेके जवोंको एक कौंचपक्षी आकर खा गया और दिवालपर जा बैठा । उतनेमें सोनार शुद्ध आहार लेकर मुनिके पास आया। इतनेमें सोनेके जवोको वहाँ पर न देख उस साधुको ही चोर विचार कर कहने लगा कि अहो साधु ! यहां रहे हुए जव किसने लियो सो कहो ? तब साधुने विचारा कि जो 'पक्षीने खाया' ऐसा कहुंगा तो यह सोनार मेरे बचनसे इस क्रौंचकी हत्या करेगा। ऐसा विचार कर मुनिने मौन धारणकिया तब अत्यंत क्रोधित हुए सोनारने गीली बाधसे मुनिका मस्तक बाधं दिया और उन्हें धूपमें खडे कर दिये । उससे उनको 3 ६ इतनी बडी वेदना उत्पन्न हुई कि उनकी आंखें बाहिरनिकलआई । तो भी मुनिने तो शुद्ध भावनाका ही आश्रय लिया । अन्तमें वे अन्तकृत् केवली हो कर मोक्ष गए । इस तरहसे प्राणान्त उपसर्गमें भी मेतार्य मुनिने जीवदया ही मनमें बिचारी, मगर और कुछ नहिं विचारा । इसीतरहसे ओरोंको भी आचरण करना |चाहिए । इस प्रकारसे यह समयिकपर मेतार्य मुनिका दृष्टान्त कहा ॥२॥ अब सत्यवादपर कालकाचार्यका दृष्टान्तकहते है, जैसे-तुर्मिणीनगरीमें कालकाचार्यका भानजा दत्त t ॥ ५ ॥ er For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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