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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie परद्रव्य हरनेमें उद्यत ऐसे चौरोंको देखके लोग इकटे भये ॥ कोटवाल घरको घेरकररहे कुटुम्बसहित सुव्रतसेठ स्थापनाचार्यके समीपमें पौषधपारके उपाश्रयजाके गुरूको नमस्कारकर धर्मसुनके अपने घरआया वहां चौरोंको देखके चौरोंको राजा न मारे ऐसीबुद्धिःसे सेठने मौनकिया॥ तव कोटवालवगैरहः राजपुरुषोंको शासनदेवीने स्तम्भितकिया ॥ मध्यान्हमें राजा आए ॥ सेठने बहुत भेटना राजाके नज़रकिया ॥ नमस्कारकिया राजाने पूछा यहक्याहै तुमने चौरोंको कैसे मनानहींकिये सेठ बोला हे प्रभो मैं पौषधमें था ॥ सब वृतान्तकहा धर्मकाखरूप सुनाके राजाको संतोषितकिया ॥ राजा बोले वर मांग सेठ बोले चौरोंको अभयमिले ॥राजाने | सेठका वचन स्वीकारकिया तब शासनदेवीने कोटवाल और चौरोंको छोड़ा ॥ बाद सेठने पारना किया ॥ औरभी एकदा प्रस्तावमें शहरमें अग्निःलगा ॥ नगरके लोग इधर उधर भाग गए ॥ सेठने पौषध किया था। अपने व्रतकी रक्षाके लिये कहींभी गयानहीं ॥ नगर सब जलगया जला हुआ जङ्गल होवे वैसा हो गया । परन्तु-सुव्रत सेठका घर और दुकान वगैरह जिनमंदिरउपाश्रय ये नहीं जले ॥ प्रभातमें समुद्रमें द्वीपके जैसा सेठका घर दुकान वगैरहः देखके सब नगरके लोग सुव्रतसेठकी प्रशंसा करते भए ॥ यथा सत्वेन धार्यते पृथ्वी, सत्वेन तपते रविः । सत्वेन वायवो वान्ति, सर्व सत्वे प्रतिष्ठितम् ॥१॥ अहो धर्मस्य माहात्म्यमस्याहो दृढ़ता व्रते। पालयेद् व्रतमेवं यो, द्वेधाऽप्यस्य शिवं भवेत् ॥ २॥ 96464X*****KASAAPKI For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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