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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्या दीवा० 18|यतः-धर्माजन्मकुले शरीरपटुता, सौभाग्यमायुर्वलं ॥ धर्मेणैव भवन्ति निर्मलयशो, विद्यार्थसंपत्तयः ॥[मान एकाकांताराच्च महाभयाच्च सततं, धर्मः परित्रायते॥धर्मःसम्यगुपासितोहि भवति, वर्गाऽपवर्गप्रदः॥३॥ दशीका ___ अर्थ । सत्वसे पृथ्वीधारण होतीहै सत्वसे सूर्य तपताहै। सत्वसे वायुः चलता है। सब सत्वमें प्रतिष्ठित॥१॥ व्याख्यान. धर्मकामाहात्म्य आश्चर्यकारीहै अहो धर्ममें (सुत्रत ) सेठकी कैसी दृढ़ताहै ॥ यह व्रत पालताहै ॥ इसके यहां और परलोकमें कल्याणहै ॥ यहां तो घर नहीं जला और पहले चौर चोरी नहीं करसकेथे ॥ परलोकमें खर्ग अपवर्गकी प्राप्ति होगी ॥२॥ धर्म से अच्छे कुलमें जन्म शरीर निरोग होना सौभाग्यपाना बडाआयुः बल पातेहैं ॥ धर्मसेही निर्मलयश होताहै ॥ विद्या और अर्थकी प्राप्तिः होवेहै । जङ्गलमें सिंह व्याघ्रादिकका अभय इससे धर्मरक्षाकरे ॥ धर्म अच्छी तरहसे किया हुआ खर्गके सुख और मोक्षके सुखदेनेवालाहै ॥३॥ बाद एक्कादशी व्रत पूरन होनेसे सेठने उद्यापनकिया ॥ मोती, रत्न, दक्षिणावर्तशंख और मूंगा, सोना, चांदीवगैरहके 5 तीर्थकरों के भूषण और भाजनकरवाए ॥ तांबे पीतल वगैरहः के पूजाके उपकर्ण करवाए ॥बहुत प्रकारके धान्य, द्र ॥६२॥ टपक्कान, नारियल, दाख, आम वगैरहफल सोने रूपके द्रव्य औरभी अशोक चंपा गुलाब वगैरहके पुष्प Pऔर रेशमी वगैरहः वस्त्र इत्यादिक अनेक वस्तु इग्यारह इग्यारह तीर्थकरके आगे चढ़ाई ॥इग्यारह अंगलिखाए॥ ABOARGANGACASSACRECAROO SCACIDCORECASEARCHECK For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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