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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा० व्याख्या ॥६१॥ RELEASESAMELESEARCH जीव मौनएकादशीका तपग्रहणकिया ॥ गुरूने कहाकि इग्यारह अंगोका आराधन करना ॥ तपअच्छीतरह ट मौन एकाकरना पूर्वभवमेंएकादशीका तप उजमने सहित किया था इससे इसभवमें प्रवर्धमानसम्पदा पाई ॥ इग्यारह- दशीका करोड़ सोनइय्योंका खामी हुआ ॥ लोकमें निर्मलयश, प्रभुत्व, अधिकारित्व, नगर सेठपना राज्य मानपनापाया॥ व्याख्यान. इसीकारणसे इसभवमेंभी तपमें उद्यम करना ॥ ऐसा कहके धर्मलाभआशीर्वाददेके गुरूने अन्यत्र विहार किया ॥ सेठ सुखसे कुटुम्बसहित इग्यारसकेदिन आठप्रहरका आहारादि त्यागरूपपौषध करे ॥ लोकमें भी मौन ६ एकादशीपर्वकीप्रसिद्धिः भई ।जिसकारणसे बड़ेलोग जिसकोमाने उसकोसबमानतेहैं । जैसे लोकमें कहतेहै महा-8 देवने मस्तकमें धारणकिया जिससे द्वितीयाकेदिन एक कलामात्रभी चन्द्र लोग पूजतेहैं । क्योंकि महाजनो येन गतः सः पन्थाः ऐसे अनेक लोग मौन एकादशीका तप करने लगे ॥ एकदा कुटुम्बसहित सेठने मौन एकादशीके दिन आठपहरकापौषधकिया ॥ पौषधकरनेवाले सवों ने रात्रिमें काउसग्गकिया। चोरोंने यहवात जानीथी मौनएकादशीकेदिन सुव्रतसेठ नहीं बोलताहै ॥ कोईवस्तु लेजाय तौभी मना नहीं करताहै। इससे चौरोंने घरमें प्रवेशकियादीपक करके चौर देखते हैं तो सोनइयोंके ढिगले पड़े हैं ॥ जितनेगठरिये बांधतेहैं उतने शासतदेवीने सबचौरोंको स्तम्भितकिया । इसीसे शासनदेवी पूजीजायहै। काउसग्ग किया जावेहै बाद प्रातःकालमें स्तंभितभये शस्त्रसहित For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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